छंद झूलना
(२६ मात्रा, ७,७,७,५ पर यति , चार पद , अंत गुरु लघु )
गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार
अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन, हे ईश दो आधार
तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार
प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....
Comment
आदरणीय डॉ० अजय खरे जी आपके शब्द पारितोषिक की तरह उत्साहवर्धन कर रहे हैं, सादर आभार.
प्रिय अरुण शर्मा जी, छंद झूलना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ.. आप भी इस छंद पर अवश्य प्रयास करें.
रचना की सराहना और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आ० श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय गणेश जी,
छंद झूलना पर यह प्रयास आपको संतुलित लगा इससे लेखन को ऊर्जा मिली है, आपकी हृदय से आभारी हूँ ,
से प्रभु करो ...में गेयता बाधित लग रही है
क्या इस पंक्ति को // लो प्रभु शरण, जीवन -मरण, से हो सहज, उद्धार // करना सही होगा...?
सादर.
आ० मनोज शुक्ला जी, रचना पर आपके सराह्नात्मक अनुमोदन के लिए आपकी आभारी हूँ
आदरणीया प्राची मैम,बहुत सुन्दर प्रणाम सहित बधाई स्वीकार करें// एक नया छंद सीखने को मिला मुझे //////
आदरणीया प्राची मैम जी, समग्र समर्पणभाव से पूरित अतिसुन्दर छन्द। बहुत-बहुत हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
आपकी रचना पढ़ कर मन सुवासित हुआ।
सादर, शुभकामनाओं सहित,
विजय
अति सुंदर रचना!
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