सुनो स्त्री !
पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !
और तुम देखोगी आत्मा को देह बनते !
तेज हुई सांसों की लय पर थिरकती छातियाँ
प्रेम कहेंगी तुमसे -
संगीत और नृत्य के संतुलन को !
सामंजस्य जीवन कहलाता है !
(ये तुम्हे स्वतः ज्ञात होगा)
सम्मोहन टूटते है अक्सर -
बर्तन फेकने की आवाजों से !
आँगन और छत के लिए आयातित धुप
पसार दी जाती है ,
शयनकक्ष की मेज पर !
रंगीन मेजपोश आत्ममुग्धता का कारण हो सकते है ,
जब बुझ जाएगा तुम्हारी आँखों का सूरज !
(अगर डूबता तो फिर उग भी सकता था)
थोपी गई धार्मिक स्मृतियाँ विस्मृत कर देतीं हैं -
प्रतिरोध की आदिम कला !
इस घटना को आस्तिक होना कहा जाएगा !
तो सुनो स्त्री !
पुरुष स्पर्श की भाषा सुनो !
बस , ह्रदय कर्ज़दार न हो
तुम्हारे कान गिरवी न रख दिए जाएँ !
(होंठ उम्र भर सूद चुकाते रहेंगे )
दूब ताकतवर मानी गई है ,
कुचलने वाले भारी भरकम पैरों से !
बीच समुन्दर ,
अकेला जहाज ,
मस्तूल पर तुम !
तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !
थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए !
……………………………...….. अरुन श्री !
Comment
लक्षमण प्रसाद सर , आपकी सराहना के लिए धन्यवाद आदरणीय !
थोपी गई धार्मिक स्मृतियाँ विस्मृत कर देतीं हैं -
प्रतिरोध की आदिम कला !इस घटना को आस्तिक होना कहा जाएगा !- बिलकुल सही कहा है आपने
दूब ताकतवर मानी गई है ,
कुचलने वाले भारी भरकम पैरों से !
बीच समुन्दर ,अकेला जहाज ,
मस्तूल पर तुम !
तुम्हारे पंख सजावट का सामान नहीं हैं !
थोपी गई स्मृतियाँ नकार दी जानी चाहिए !-बहुत खूब एक सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय अरून जी मैं आपसे यह प्रश्न पूछता नहीं। दरअसल कई रचनाओं में मैंने यूं ही लिखा देखा तो मन में शंका थी। आपकी रचना में यह शब्द देखकर सोचा कि आपसे ही पूछ लूं हो सकता है कि यह कोई शब्द हो जिसका मुझे ज्ञान न हो।
आपका आभार!
अशोक रक्ताले सर , हार्दिक धन्यवाद आदरणीय !
बृजेश नीरज सर , "धुप" वास्तव में "धुप" नहीं , "धूप" है ! :-))))) :-))))) ! आपने इस टंकण की त्रुटी की ओर ध्यान दिलाया , इसके लिए आपका आभारी हूँ ! और आपकी उदात्त सराहना के लिए भी ! सादर !
सीमा अग्रवाल मैम , कहते हैं एक पुरुष तब तक एक सम्पूर्ण मानव नहीं बन सकता जब तक उसमें एक स्त्री जीवित न हो ! फिर एक कवि का होना कैसे सार्थक जब उसकी लेखनी स्त्रियोचित व्यवहार न करे ! आपने कविता को सराहा ! इसके लिए हार्दिक धन्यवाद !
सौरभ पाण्डेय सर , आपका प्रतिक्रिया भी किसी कविता से कम सुन्दर और मोहक नहीं ! आपकी उपस्थिति और शाब्दिक अनुमोदन हेतु सादर आभार आदरणीय !
केवल प्रसाद सर , हार्दिक धन्यवाद आपका !
कुंती मुखर्जी मैम , आपने एक विशिष्ट अंदाज में सराहना की , मतान्तर भी प्रकट किया ! आपका हार्दिक धन्यवाद ! मैं कोई कवि (अच्छा ) नहीं हूँ बस अपने भाव लिखता हूँ ! इस कठोर वर्तमान में कठोर हुआ मन कोमलता कैसे लिखता ! जो अनुभूत है वही लिखा ! सादर !
अनवर सुहैल सर , आपने अतिशय मान दिया कविता को ! सादर धन्यवाद !
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