दोस्तों इस मंच पर अपनी पहली रचना पोस्ट कर रहा हूँ........
गिन रहे हैं जिस तरह से आती-जाती सांस को हम......
उस तरह तुमने कभी क्या अपनी साँसों को गिना है ?
सीप की मानिंद दृढ़ है माना ये चेहरा हमारा.....
कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.......
मैं तुम्हारे संग बीते कुछ पलों को जी रहा हूँ......
सत्य ये है तुम बिना जीवित कहाँ अजी रहा हूँ....
देखते ही देखते "कल" हो गया है "आज" सारा....
किन्तु मैं निष्प्राण सा बस अब तलक माज़ी रहा हूँ......
मेरे सारे क़हक़हों का है बही सारे जहां पर ......
किन्तु दुख तो अनकहा है अनसुना है अनगिना है...
कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.......
अब भी जां देता है कोई क्या तुम्हारी हूक पर.....??
वार देता है स्वयं की भूख तेरी भूख पर.....
अब भी कोई है जो देकर तुझको साफ कुर्सियां......
बैठ जाता है स्वयं मिट्टी लगे सन्दूक पर.......
कुर्सियां सब मेरे घर की वर्षों से खामोश है.......
कितना उदास मिट्टी लगा सन्दूक सच तेरे बिना है......
कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.......
KAVI DEEPENDRA
{अप्रकाशित.....मौलिक.....}
Comment
बृजेश भाई बहुत आभार.....
बहुत सुन्दर रचना। आपको ढेरों बधाई।
अशोक भाई बहुत आभार.....
अब भी जां देता है कोई क्या तुम्हारी हूक पर.....??
वार देता है स्वयं की भूख तेरी भूख पर.....
अब भी कोई है जो देकर तुझको साफ कुर्सियां......
बैठ जाता है स्वयं मिट्टी लगे सन्दूक पर....... ओहो हो हो वाह! गजब है.दिल खुश कर दिया भाई कवि श्री दीपेन्द्र जी आपको प्रथम बार पढ़ना बहुत सुन्दर लगा, यूँ ही सुन्दर रचनाएं करते रहें. स्वागत है आपका इस मंच पर. बहुत बहुत बधाई.
प्रियंका जी आपका आभार.....
कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है.. सुन्दर
सुन्दर और मार्मिक रचना। बधाई स्वीकारें। सादर,
प्रदीप जी, COONTEE JI आपका बहुत-बहुत आभार.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .
मैं तुम्हारे संग बीते कुछ पलों को जी रहा हूँ......
सत्य ये है तुम बिना जीवित कहाँ अजी रहा हूँ....
देखते ही देखते "कल" हो गया है "आज" सारा....
किन्तु मैं निष्प्राण सा बस अब तलक माज़ी रहा हूँ.......सादर / कुंती
कितना उदास मिट्टी लगा सन्दूक सच तेरे बिना है......
कोई पूछे इस हृदय से जिसका एक मोती छिना है...
आपका हार्दिक स्वागत है.
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें
सादर
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