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नवगीत ::: नेता काटें ‘मोटा माल’

सामयिक मुद्दों पर एक नवगीत ...

 

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

साम्यवाद के पक्ष में

जितने दावे थे

सब ख़ारिज हैं

देश में अब क़ानून के मंत्री

खुद क़ानून से

आजिज हैं

सी बी आई में बैठे हैं

नेता जी के

सौ सौ लाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

न्यूज़ चैनलों में हम देखें

घोटालों का

डेली सोप

मामा भांजे के रिश्ते में

खोज रहे हैं

सब स्कोप

लंबी लंबी बातें करके

हो जाते हैं

जो मिस काल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

व्यभिचारों के पैमाने से

नपता दिल्ली

का किरदार

पर संसद में अब भी होता

सख्त सजा पर

सोच विचार

दिल वालों के बस्ती शायद

नैतिकता से

है कंगाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

दारू पी कर जो बहके थे

मर कर वो

हो गए शहीद

मार के दुश्मन के कैदी को

उनको हम

देते ताकीद

गांधी जी के तीनों बन्दर

छाती पीटें

नोचें बाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

आने वाले समय को अपनी

ओर से हम

भटकाव न दें

हम पर जिम्मेदारी है अब

जाति धर्म को

भाव न दें

हर मुश्किल का हल हम खोजें

खुद ना होगा

कोई कमाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

वीनस केसरी 

मौलिक व अप्रकाशित  

 

 

Views: 693

Comment

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Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 11:23pm

सावित्री राठौर जी,
रचना को आपका अनुओदन व स्नेह मेरे रचनाकार मन को संतृप्त कर गया
सादर आभार 

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 11:21pm

केवल प्रसाद जी
आपने अनुग्रहीत किया 

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 11:21pm

शशि जी,

सामयिक बोध को अपना समर्थन देने के लिए आभार

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 11:20pm

कल्पना जी, 
रचना को आपका आशीष मिला और मुझे कुछ और गीत लिखने का साहस 
सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 11, 2013 at 12:13pm

’दिल वालों के बस्ती शायद
नैतिकता से
है कंगाल
रो रो कर जनता बेहाल
नेता काटें ‘मोटा माल‘।’ वाह..! भाई जी, बहुत सुन्दर भाव। तहेदिल से बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by Savitri Rathore on May 11, 2013 at 12:11pm

वर्तमान परिस्थितियों पर करारा व्यंग्य .........सटीक वर्णन .....बधाई हो।

Comment by shashi purwar on May 11, 2013 at 9:24am

bahut sundar aur samayaik navgeet venas ji ......

दारू पी कर जो बहके थे

मर कर वो

हो गए शहीद

मार के दुश्मन के कैदी को

उनको हम

देते ताकीद

गांधी जी के तीनों बन्दर

छाती पीटें

नोचें बाल

रो रो कर जनता बेहाल

satik rachna

Comment by कल्पना रामानी on May 11, 2013 at 9:02am

दारू पी कर जो बहके थे

मर कर वो

हो गए शहीद

मार के दुश्मन के कैदी को

उनको हम

देते ताकीद

गांधी जी के तीनों बन्दर

छाती पीटें

नोचें बाल

रो रो कर जनता बेहाल

सामयिक और सटीक नवगीत के लिए हार्दिक बधाई वीनस जी... 

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 2:20am

कुंती जी,
इन पंक्तियों पर आपसे सराहना पाना मेरे लिए खुशी का कारण बनता गया है 
सादर

Comment by वीनस केसरी on May 11, 2013 at 2:19am

अविनाश जी,
प्रस्तुत पंक्तियों को पसंद करने के लिए और उत्साह बढ़ाने के लिए आपका आभारी हूँ

कृपया ध्यान दे...

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