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वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे

एक ताज़ा ग़ज़ल आप सभी की मुहब्बतों के हवाले ....

वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे
पुकारता भी रहे और नज़र न आए मुझे

मैं डर रहा हूँ कहीं वो न हार जाए मुझे
मेरी अना के मुक़ाबिल नज़र जो आए मुझे

मुझे समझने का दावा अगर है सच्चा तो 
मैं उसको चाहता हूँ, अब 'वही' बताए मुझे

मनाने रूठने के खेल में तो तय था यही
मैं रूठ जाऊं, वो हर हाल में मनाए मुझे

वो मुफ्त में मुझे हासिल नहीं है, तो वो भी
मुहब्बतों के हवाले से ही कमाए मुझे

मैं सुब्हो शाम पढ़े हूँ उसे फ़साने सा
वो हर वरक पे मनाज़िर नए दिखाए मुझे

(मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फैलुन)
१२१२ ११२२ १२१२ २२

- वीनस केसरी

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 9:57pm

सौरभ जी,

सच कहूँ तो अब तक की अपनी १८० - १९०  रचनाओं में १०- १२ को ही ग़ज़ल के रूप में दिल के करीब पाता हूँ 
बाकी सब मुझे बहरो वज्न में प्रलाप ही दिखती हैं ...

इसे आप अन्यथा न लीजियेगे मैं इस पर बहुत सीरियस हूँ ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 5, 2013 at 9:49pm

भाई वीनसजी, मैं बस यही आश्वस्ति चाहता था. आमीन. आप बढिये क्योंकि आपके पास विधा का लिहाज़ है. जिसकी कमी थी वो इस ग़ज़ल से झलक रही है.

इस बात के तहत एक बात और कहूँगा कि ओबीओ पर रचनाओं या ग़ज़लों पर ’वाह’ और ’आह’ के बीच समझ को भी बढ़ाने का काम किया जाता है. भाई अरुन अनन्तजी ने जिन शब्दों में इस ग़ज़ल पर अपनी बेबाक प्रतिक्रिया ज़ाहिर की है वह उनका हक़ है. इस पर कोई कुछ नहीं कह सकता. 

लेकिन ग़ज़लगोई का मतलब क्या सिर्फ़ चौंकाना है ? कौतुक पैदा करना है ? आपकी ग़ज़ल के बरअक्स इस बात का इशारा उछाल रहा हूँ.

जिस मेयार की यह गज़ल है या हम सभीने समझा है वह किसी नाउम्मीद ग़ज़लकार का एकालाप तो है नहीं.  फिर आपने ऐसे शब्द का प्रयोग स्वयं ही क्यों किया ?  वैसे, यह खूब स्पष्ट है कि इस ग़ज़ल का संज़ीदे ख़यालात से उतना ही रबिता है जितना अश’आर का बह्रोवज़्न से होता है.

पुनः ढेर सारी बधाई..

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 9:04pm

सौरभ जी आपका विश्लेषण सटीक है ....

बहुत कुछ निभाने की कोशिश है देखना है कहाँ तक सफलता मिलती है ....


Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 9:02pm

jitendra jee punah dhanyvaad 

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:55pm

कल्पना जी आपका लाजवाब हो जाना मुझे भी लाजवाब कर गया ...

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:54pm

गीतिका जी आपको ग़ज़ल पसंद आई जान कर बेहद खुशी हुई ..

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:53pm

कुंती जी धन्यवाद 

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:52pm

धन्यवाद राम शिरोमणि जी आपका आभारी हूँ 

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:52pm

शालिनी जी खुले दिल से ग़ज़ल का अनुमोदन करने के लिए धन्यवाद 

Comment by वीनस केसरी on June 5, 2013 at 8:51pm

अरुन अभिनव जी आपका हार्दिक आभारी हूँ 

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