For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत ::: नेता काटें ‘मोटा माल’

सामयिक मुद्दों पर एक नवगीत ...

 

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

साम्यवाद के पक्ष में

जितने दावे थे

सब ख़ारिज हैं

देश में अब क़ानून के मंत्री

खुद क़ानून से

आजिज हैं

सी बी आई में बैठे हैं

नेता जी के

सौ सौ लाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

न्यूज़ चैनलों में हम देखें

घोटालों का

डेली सोप

मामा भांजे के रिश्ते में

खोज रहे हैं

सब स्कोप

लंबी लंबी बातें करके

हो जाते हैं

जो मिस काल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

व्यभिचारों के पैमाने से

नपता दिल्ली

का किरदार

पर संसद में अब भी होता

सख्त सजा पर

सोच विचार

दिल वालों के बस्ती शायद

नैतिकता से

है कंगाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

दारू पी कर जो बहके थे

मर कर वो

हो गए शहीद

मार के दुश्मन के कैदी को

उनको हम

देते ताकीद

गांधी जी के तीनों बन्दर

छाती पीटें

नोचें बाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

 

आने वाले समय को अपनी

ओर से हम

भटकाव न दें

हम पर जिम्मेदारी है अब

जाति धर्म को

भाव न दें

हर मुश्किल का हल हम खोजें

खुद ना होगा

कोई कमाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

 

वीनस केसरी 

मौलिक व अप्रकाशित  

 

 

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2013 at 12:30am

सौरभ जी, इस विस्तृत विवेचना के लिए आपका आभारी हूँ

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2013 at 12:28am

विजय मिश्र जी शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 15, 2013 at 4:14pm

विलम्ब से आना हो रहा है. किन्तु मेरी भागदौड़ की दशा से आप वाकिफ़ ही हैं.

दूसरे, ज़ल्दबाजी में इस रचना पर कुछ कहना इस प्रस्तुति के साथ न्याय करना नहीं होता. भले दो पंक्तियाँ में अपनी बात कहूँ लेकिन ठहर कर कुछ कहने का अलग ही संतोष होता है.

पहले तो आपकी रचना के लिए बधाई.

इस विधा में व्यक्तिगत भावनाओं और आपसी सम्बन्धों को अभिव्यक्त करते बिम्ब ही नहीं, आमजन को प्रभावित करते करेण्ट टॉपिक्स को भी अपने  लिहाज से शामिल करना एक शुरु से होता रहा है. आपने तो आजके प्रशासन और कार्यकारिणी दोनों ही को निशाने पर लिया है. यह अवश्य है कि एक दो बंद थोड़े कंट्रोवर्सियल विन्दुओं को साझा करते हुए से हैं जिनपर सतही तौर पर कुछ कहना उचित नहीं था.

गीत की विधा और इसका तथ्य दोनों संयत है. कथ्य में थोड़ा सपाटपन है, कारण चाहे जो हो. मंच क श्रोता तो संतुष्ट हो जायेंगे लेकिन शब्द वाचन के आग्रही पाठक थोड़ा मायूस होंगे.  लेकिन, सर्वोपरि, जो बात विशेष रूप से दृष्टि में आती है वह इस रचना की लम्बाई. कथ्य सहज ही दो-तीन बंदों में बिम्बों के माध्यम से या इंगितों में ढाले और बाँधे जा सकते थे.

नवगीत के बंद (अंतरे) यदि दो से अधिक तुकांत लें और उसके बाद आधार पंक्ति आती हो तो श्रेयस्कर यही होता है कि उन्हें संख्या में तीन से आगे न जाने दिया जाय, अन्यथा पाठक/श्रोता के धैर्य की परीक्षा होने लगती है.

लेकिन यह अवश्य कहूँगा कि कवि हृदय संप्रेषण हेतु चाहे जो विधा/ माध्यम अपनाये, वह संवेदनशील होगा तो विधा कोई हो कथ्य से संतुष्ट करेगा. विधाजन्य प्रयास में निरंतरता कथ्य-संप्रेषण को निखारती चलती है.

इस प्रयास हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ.. .

Comment by विजय मिश्र on May 14, 2013 at 4:28pm
"व्यभिचारों के पैमाने से
नपता दिल्ली
का किरदार
पर संसद में अब भी होता
सख्त सजा पर
सोच विचार
दिल वालों के बस्ती शायद
नैतिकता से
है कंगाल " ---- हाल के बेहाली का सुंदर चित्रण और जड़ पर प्रहार करने की चेष्टा और चेष्टाओं की बात प्रसंशनीय है ,धन्यवाद वीनसजी
Comment by वीनस केसरी on May 14, 2013 at 12:56am

धन्यवाद बृजेश जी
हार्दिक आभार

Comment by वीनस केसरी on May 14, 2013 at 12:56am

लक्षमण प्रसाद जी नवगीत को अपना स्नेह व आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद

Comment by बृजेश नीरज on May 13, 2013 at 6:54pm

अहा वीनस भाई! बहुत खूब! मजा ही आ गया पूरा! वर्तमान परिस्थितियों पर बहुत सुन्दर कटाक्ष और अंत उचित सलाह से। आपको बहुत सारी बधाई!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 13, 2013 at 2:26pm

सुन्दर और सामयिक नवगीत के लिए बधाई श्री वीनस केसरी जी 

Comment by वीनस केसरी on May 13, 2013 at 1:19am
जवाहर लाल सिंह जी,

हार्दिक आभार
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 12, 2013 at 6:00am

आने वाले समय को अपनी

ओर से हम

भटकाव न दें

हम पर जिम्मेदारी है अब

जाति धर्म को

भाव न दें

हर मुश्किल का हल हम खोजें

खुद ना होगा

कोई कमाल

रो रो कर जनता बेहाल

नेता काटें ‘मोटा माल’

आदरणीय केसरी जी, आपने वर्तमान की लगभग सभी विषयों पर कलम चलायी है!

हमें सचेत होना ही होगा

नहीं तो और भी होगा बुरा हाल!... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी कोशिशों पर तो हम मुग्ध हैं, शिज्जू भाई ! आप नाहक ही छंदों से दूर रहा करते हैं.  किसको…"
52 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहा आधारित एक रचना: प्यास बुझाएँगे सदा सूरज दादा तुम तपो, चाहे जितना घोर, तुम चाहो तो तोड़ दो,…"
59 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, सदा की भाँति इस बार भी आपकी रचना गहन भाव और तार्किक कथ्य लिए हुए प्रस्तुत…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त चित्र को सार्थक दोहावली से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है.  तन…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पैसा है तो पीजिए, वरना रहो अधीर||...........वाह ! वाह ! लाख टके की बात कह दी है आपने.…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय शिज्जु शकूर जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर दोहे रचे हैं आपने. सच है यदि धूप न हो…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत दोहों की सराहना के लिए आपका हृदय…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार. आपकी…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  जी ! भाई लक्ष्मण धामी जी आप जो कह रहे हैं मन के मार्फ़त या दिल के मार्फ़त उस बात को मैं समझ…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुसार उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सार्थक दोहावली के लिए| दोपहर और …"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  हार्दिक बधाई इस सार्थक दोहावली के लिए| तन-मन ये मन  से …"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service