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आओ फिर बटवारा कर लो......

अब जो तुम ना लोटोगे तो

आओ फिर बटवारा कर लो

तुम अपने दिल से जो चाहो

वो सभी सोगातें रख लो....

 

हाँ मैं दोषी नहीं फिर भी चलो

मेरी गवाही तुम ले लो

गिनाते थे जो ऐब मुझ को

वो तुम अब लिख के दे दो.....

 

भर के रखे तुम्हारे लिए

अरमानो के पैमाने जो

जाते हुए उनका अंतिम

संस्कार खुद से कर दो

अब भी कोई बता दो

शर्त रखते हो तो

इस वक़्त उसे भी

आखिरी सलामी दे दो....

 

सूखे फूलो को मैं रख लूंगी

तुम उनके जज्बात ले लो

मेरी आँखों के अक्स का

तुम क्या करोगे छोड़ो

तुम धूप का चश्मा रख लो

याद आएँगी मुझे वो बरसातें

मुझे गीली सही तुम

वो सूखी चादर रख लो....

 

मैं अंधेरों में ही तुम्हे

याद कर लुंगी

तुम तारों की झिलमिल

बारातें रख लो

मेरा कल तो तुम

ले ही चुके हो अपने

कल के लिये

मेरी दुआएं रख लो....

 

मेरे लिये तुम्हारे धोखे सही

अपने लिये मेरी वफाएं रख लो

सलामत रहे मोहब्बत मेरी

कम जो पड़े तो मेरी

उम्र भी तुम रख लो....

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Comment by KAVI DEEPENDRA on May 17, 2013 at 6:48pm

मेरे लिये तुम्हारे धोखे सही

अपने लिये मेरी वफाएं रख लो......गजब के विचार.....वाह....

Comment by Priyanka singh on May 17, 2013 at 6:41pm

राम शिरोमणि जी पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया ....जी जरुर घर का बटवारा नहीं होने देंगे बेफिक्र रहे ......

Comment by Priyanka singh on May 17, 2013 at 6:39pm

शुक्रिया नीरज मिश्रा जी .........

Comment by Priyanka singh on May 17, 2013 at 6:38pm

आभार श्रीराम जी आपका ....

Comment by ram shiromani pathak on May 17, 2013 at 3:42pm

sunadar ati sundar lekin ghar ka batwaara mat kar ijiyega adareeyaa priyankaa ji///saadar

Comment by Neeraj Nishchal on May 17, 2013 at 11:42am

सुन्दर रचना

Comment by श्रीराम on May 17, 2013 at 11:29am

बहुत सुन्दर रचना ...

कृपया ध्यान दे...

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