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कविता हमारे ह्रदय से सहज ही फूटती है, ये तो आवाज़ है दिल की ये तो गीत है धडकनों का एक बार जो लिख गया सो लिख गया ह्रदय के सहज भाव से ह्रदय क्या जाने व्याकरण दिल नही देखता वज्न ...वज्न तो दिमाग देखता है…Continue
Started this discussion. Last reply by Dr Ashutosh Mishra Sep 4, 2013.
कभी बैठे बैठे आँखों में भर आये आंसू जाने क्यूँ |
कभी महकी हवा से घुलने लगी साँसों में खुशबू जाने क्यूँ |
कुछ बात अकेले पन में है , कोई गीत छिड़ा जीवन में है |
अस्तित्व के मौन तरानों का संगीत मेरी धड़कन में है |
एहसास ये कुछ अनजाना सा, अब हर लम्हा दीवाना सा |
पल पल में बहारें ले आये ये मौसम कुछ मस्ताना सा |
ऐसे में फिर हो जाता है ये दिल बेकाबू जाने क्यूँ |
कभी बैठे बैठे आँखों में भर आये आंसू जाने क्यूँ |
दिल कहता है पागल हो जाऊं, इस बहती हवा में उड़ जाऊं |
ज्यूँ नदियाँ मिलती सागर से ऐसी ही तुझ से मिल जाऊं |
अब हर दीवार गिरा दूँ मै,सब एक में आज मिला लूँ मै |
यूँ फैलाऊं बाहें अपनी सारा अस्तित्व समा लूँ मै |
इन बहती हवा के झोकों में कोई जाता है छू जाने क्यूँ |
नीरज......
महफिलों से एक दिन जाना ही है ।
आख़िरश अंजामे दिल तनहा ही है ।
क्या हुआ जो आज मै तड़पा बहुत,
मुद्दतों से दिल मेरा तड़पा ही है ।
मै तुम्हे अपनी हकीकत क्या कहूँ,
तुमने जो सोचा तुम्हे करना ही है ।
प्यार के सपने बिखर कर चूर हैं,
प्यार भी शायद कोई सपना ही है ।
प्यार में दिल टूटना क्यों आम है,
सब ये कहते हैं कि ये…
Posted on February 18, 2018 at 1:56am — 3 Comments
इश्क कुछ इस तरह निबाह करो ।
तुम मुझे और भी तबाह करो ।
तोड़ दो दिल तो कोई बात नहीं,
टूटे दिल मे मगर पनाह करो ।
मै अगर कुछ नहीं तुम्हारा हूँ,
दर्द पर मेरे तुम न आह करो ।
चाहना तुमको मेरी फितरत है,
तुम भले ही न मेरी चाह करो ।
तुम सजा पर सजा सुना दो पर,
मत कहो मुझसे मत गुनाह करो ।
आज कुछ यूँ मुझे सताओ तुम,
ग़ज़ल पर मेरी वाह वाह करो ।
नीरज मिश्रा
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on February 15, 2018 at 5:26am — 4 Comments
दर्द में ऐसे जलता है दिल ।
मोम जैसे पिघलता है दिल ।
यादों में ही रहे बेकरार,
यादों में ही बहलता है दिल ।
दर बदर ठोकरें मिल रहीं,
पर भला कब सँभलता है दिल ।
कुछ कभी तो कभी है ये कुछ ,
लमहा लमहा बदलता है दिल ।
तनहा तनहा किसी शाम सा,
होके वीरान ढलता है दिल ।
प्यार का कोई दरिया सा है,
जिसमें हर वक्त घुलता है दिल ।
नीरज मिश्रा
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on February 14, 2018 at 12:18am — 6 Comments
होके मजबूर तेरी गलियों से जाना होगा ।
अब खुदा जाने कहाँ अपना ठिकाना होगा ।
मै मना पाया न रब को न तेरे दिल को,
अब तो तनहाई में खुद को ही मनाना होगा ।
जान मेरी मै बिना तेरे जियूँगा लेकिन,
मेरे जीने में न जीने का बहाना होगा ।
तनहा होकर भी रहूँगा न कभी तनहा,
तेरी यादों का मेरे साथ ज़माना होगा ।
हर रजा अपनी मै हारूँगा रजा पर तेरी,
प्यार जब कर ही लिया है तो निभाना होगा ।
प्यार का नाम फकत प्यार को…
ContinuePosted on February 13, 2018 at 9:37am — 10 Comments
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इसके लिए आभारी हूँ आपकी
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey said…
प्रभावित होना एक बात है, लेकिन प्रोफ़ाइल फोटो किसी व्यक्ति की परिचयात्मकता की पहली कड़ी होती है. विश्वास है, तदनुरूप शीघ्र प्रयास करेंगे.
सादर
सदस्य कार्यकारिणीगिरिराज भंडारी said…
वाह नीरज भाई , क्या बात है
भले ही दुनियादारी के बड़े नादान पंछी हम ,
मगर दिल के हिसाबों में समझ अपनी सयानी है ।
आभार नीरज की ओर से नीरज को