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महफिलों से एक दिन जाना ही है ।
आख़िरश अंजामे दिल तनहा ही है ।

क्या हुआ जो आज मै तड़पा बहुत,
मुद्दतों से दिल  मेरा तड़पा ही है ।

मै तुम्हे अपनी हकीकत क्या कहूँ,
तुमने जो सोचा तुम्हे करना ही है ।

प्यार के सपने बिखर कर चूर हैं,
प्यार भी शायद कोई सपना ही है ।

प्यार में दिल टूटना क्यों आम है,
सब ये कहते हैं कि ये होता ही है ।

अब किसी भी रास्ते को चुन ले दिल,
रास्ता तेरा तो तू भूला ही है ।

किसको चाहूँ किसको अब रुसवा करूँ,
प्यार अपना दर्द भी अपना ही है ।

मै भला हूँ किस तरह तुझसे अलग,

मुझमे जो कुछ भी है सब तेरा ही है ।

तू किसी दिन मुझको मिल ही जायेगा,
रात दिन रब से तुझे माँगा ही है ।

मौलिक व अप्रकाशित

नीरज मिश्रा

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2018 at 1:30pm

आ. भाई नीरज जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ः

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 18, 2018 at 3:08pm

आदर्णीय नीरज मिश्रा जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई

Comment by रक्षिता सिंह on February 18, 2018 at 11:28am

आदरणीय नीरज जी बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ...

 मैं भला हूँ किस तरह तुझसे अलग,

मुझमें जो कुछ भी है सब तेरा ही है।

हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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