दर्द में ऐसे जलता है दिल ।
मोम जैसे पिघलता है दिल ।
यादों में ही रहे बेकरार,
यादों में ही बहलता है दिल ।
दर बदर ठोकरें मिल रहीं,
पर भला कब सँभलता है दिल ।
कुछ कभी तो कभी है ये कुछ ,
लमहा लमहा बदलता है दिल ।
तनहा तनहा किसी शाम सा,
होके वीरान ढलता है दिल ।
प्यार का कोई दरिया सा है,
जिसमें हर वक्त घुलता है दिल ।
नीरज मिश्रा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बड़े अच्छे भाव हुए आदरणीय..बाकी आदरणीय तस्दीक जी बता ही चुके हैं...
जनाब नीरज साहिब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है , कोशिश करते रहिए ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ |
शेर 2 के मिसरों में लय बाधित हो रही है | यूँ कर सकते हैं " बे क़रारी बढ़े याद से -याद से ही बहलता है दिल "
शेर 3 उला यूँ करसकते हैं |"दर बदर खा रहा ठोकरें "
शेर 4 उला यूँ करलें |"सामने प्यार होता है जब "
शेर5 शेर 6 के मिसरों में रब्त की कमी है | यूँ करलें |"कोई शायद ख़यालों में है -यूँ न उसका मचलता है दिल "
ज़ख़्म अपने लगाते हैं जब ---अपने अंदर ही घुलता है दिल |
बहुत बहुत हार्दिक आभार आदरणीय राम अवध जी
बहुत बहुत हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहजाद जी
खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई
बहुत बढ़िया पेशकश। हार्दिक बधाई आदरणीय नीरज मिश्रा ' प्रेम' जी।
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