बदलना
अच्छा है ....पर एक हद तक
और वो हद
खुद तय करनी होती है
ऐसी हद जिसके भीतर
किसी का दिल न टूटे
कोई रोये न....बीते लम्हें याद कर
वादे याद कर मलाल न करे
वो हद जो
दूर करे पर नफरत न पलने दे
याद रहे पर इंतज़ार न रहने दे
रिश्तों में बदलना
कभी भी सुख नहीं देता
चुभन...दर्द...अफ़सोस और
बेचैनी लिए
पल-पल ज़िन्दगी गिनता है
इन सब से परे
कितना आसान…
ContinueAdded by Priyanka singh on September 7, 2014 at 3:07pm — 5 Comments
ये पल पल
गहराता कभी न
खत्म होने वाला
सन्नाटा
नहीं ....ये शान्ति नहीं है
चुप्पी भी नहीं है
न ....विराम है
ज़िन्दगी का
बहते समय का, गुज़रते दिनों का
फिर क्यूँ ये
ठहरा सा लगता है
जैसे
बांध के टांग दिया है
दीवार पर
इन बीतते दिनों को
शामों को, रातों को और
अलगे हर दिन को
कभी कभी
यूँ लगता है जैसे
कई सालों से यही है समय
यही था और इसी तरह…
ContinueAdded by Priyanka singh on July 2, 2014 at 6:30pm — 14 Comments
हे मन कर कल्पना
बना फिर अल्पना
खोल कर द्वार
सोच के कर पुनः संरचना
हे मन कर कल्पना
क्यूँ मौन तू हो गया
किस भय से तू डर गया
खड़ा हो चल कदम बढ़ा
करनी है तुझे कर्म अर्चना
हे मन कर कल्पना
छोड़ उसे जो बीत गया
भूल उसे जो रीत गया
निश्चय कर दम भर ज़रा
सुना समय को अपनी गर्जना
हे मन कर कल्पना
पथ है खुला तू देख तो
नैनो को मीच खोल तो
ऊंचाई पर ही फल मीठा…
ContinueAdded by Priyanka singh on May 22, 2014 at 6:18pm — 16 Comments
नन्हीं नन्हीं
ख़वाहिशें जन्मी है
जैसे पतझड़ के बाद
नन्हीं कलियाँ
नन्ही कोपले
बड़े आग़ाज़ का
छोटा सा ख़ाका
बड़ी उम्मीदों की
छोटी सी किरन
उगने दो इन्हें
पनपने दो
कल की धूप के लिए
इनके साये बनने दो
करो तैयारी
खूबसूरत शुरुआत कि
सजाओ बस्ती
अपने जहान कि
के फिर
मौसम ने करवट ली है
फिर क़िस्मत ने दवात दी है
फिर खुशियों ने रहमत की…
ContinueAdded by Priyanka singh on April 1, 2014 at 2:32pm — 20 Comments
बहुत शोर है यहाँ
बहुत ज़्यादा
मैं कैसे वो आवाज़ सुन सकूँ
जो मेरे लिए है
कितनी ही देर कानों पर हाथ लगा
सब अनसुना करती रही
लेकिन
शोर इतना है कि मेरी हथेलियों को
भेद कर मेरे कानों पर बरस पड़ता है
मष्तिष्क की हर नब्ज़ थर्राने लगी है
नसों में आक्रोश भर गया है
अजीब शोर है यहाँ
जलन, ईर्षा, द्वेष, अपमान का,
भेदभाव का शोर
धधकता, जलाता शोर
इस तरहा बढ़ता जाता है कि
इच्छाशक्ति…
ContinueAdded by Priyanka singh on March 12, 2014 at 3:30pm — 18 Comments
"ऐ मीनरी !! जा जरा पानी तो ले के आ , उफ़ गर्मी भी कितनी हो रही हैं अभी ब्लाक में एक मीटिंग में जाना हैं बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत हैं आज वहां "
"इत्ती देर लगे क्या पानी लाने में !! एक तो भगवान् ने मेरी किस्मत में तीन तीन छोरिया लिख दी " ऊपर से सारा दिन किताबो में घुसी रहती है यह नही की घर का कम काज सीखे कलक्टर बनके सर पे नाचने के सपने देख रही ! " राना जी झल्लाते हुए जोर से चिल्लाये और पत्नी डर के मारे पानी का गिलास लिए उनके सामने पल्लू मुह में दबाये आन खड़ी हुयी .. क्या हैं यह !!! हैं !!…
Added by Priyanka singh on January 25, 2014 at 10:19pm — 34 Comments
मन शाम के बहानों से उदास
सोच के सागर किनारें
गुज़रते लम्हों के
सफ्हें बदलता रहा
कब आँखे थक कर
बैठ गयी ख़बर नहीं
ज़ेहन में एक तस्वीर
उभर आयी
शांत चेहरे पर
झीनी सी मुस्कराहट
होठों की नमी उड़ी थी कहीं
पर आँखे शरारती
जैसे कह रही थी मुझे
''अच्छा तो तुम अब ऐसे याद करोगी''
आँखे खुल गयी चौंक कर
कुछ नहीं था, कोई नहीं था
बस वो ख्याल था और
बहुत देर तक साथ रहा
आज…
ContinueAdded by Priyanka singh on January 19, 2014 at 4:36pm — 19 Comments
अभिनय कर तो लूँ
पर कच्ची हूँ
माँ पकड़ ही लेती है छुपाये गए
झूठे हाव भाव...
चुप रह कर सिर्फ सर हिला कर
उनकी बातों का जवाब देना
छत पर घंटों अकेले बिताना
रात भर जागना
और सुबह लाल आँखों से
माँ से कहना-
कुछ नहीं कल गर्मी बहुत थी
नींद नहीं आयी...
माँ ने भी कुछ न कह
बस पास बिठा कर कहा
चाय पियो आराम मिलेगा
वो तो समझ गयी...
काश मैं भी वो समझूं
जो वो मुझसे रोज़ न कहते हुए…
ContinueAdded by Priyanka singh on January 12, 2014 at 10:28pm — 16 Comments
रात का दूसरा पहर
दूर तक पसरा सन्नाटा और
गहरा कोहरा
टिमटिमाती स्ट्रीटलाइट
जो कोहरे के दम से
अपना दम खो चुकी है लगभग
कितनी सर्द लेहर लगती है
जैसे कोहरे की प्रेमिका
ठंडी हवा बन गीत गाती हो
झूम जाती हो
कभी कभी हल्के से
कोहरे को अपनी बाहों में ले
आगे बढ़ जाया करती
पर कोहरा नकचढ़ा बन वापस
अपनी जगह आ बैठता
ज़िद्दी कोहरा प्रेम से परे
बस अपने काम का मारा
सर्द रात में खुद का साम्राज्य
जमाये है हर…
Added by Priyanka singh on December 11, 2013 at 10:00pm — 41 Comments
बेहतर था
कुछ कमी न होती,
आँखों में
यूँ नमी न होती...
तुम न आते गर
‘’जान ‘’यूँ
अधूरी न होती...
बंद ही रहता
अँधेरा कमरा,
रौशनी की
फिर गुंजाइश न होती...
न देखते सपने
न पंखों की
उडान होती...
फूंका न होता
दिल अपना,
तुम्हारी हाथ सेकने की
जो फरमाइश न होती...
तुम्हारा ख्याल ही जो
झटक दिया होता,
मेरे प्यार की
फिर पैमाइश न होती...
प्यार न…
ContinueAdded by Priyanka singh on October 25, 2013 at 6:27pm — 21 Comments
कुलबुलाते कुछ अधखुले बीज
मेरे बरामदे के कोने में पड़े हैं
शायद माँ ने जब फटकारे
तो गिर गए होंगे
बारिश के होने से कुछ पानी और
नमी भी मिल गयी उन्हें
सफाई करते ध्यान भी नहीं दिया
बड़ी लापरवाह है कामवाली भी
दो दिन हुए हैं और बीजों ने
हाथ पैर फ़ैलाने शुरू कर दिए
हाँ ठीक भी तो है
मुफ्त में मिली सुविधा से
अवांछित तत्व फलते-फूलते ही हैं
पर अब जब वो यूँही रहे तो
बरामदे में अपनी जड़े जमा लेंगे
फिर…
ContinueAdded by Priyanka singh on September 13, 2013 at 10:08pm — 24 Comments
एहसासों की लेखनी में श्रेष्ठ कवयित्री अमृता जी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मेरी एक अदना सी कोशिश, उनको बयां कर पाना आसां नहीं है,बस कोशिश की है....
नज्मों को सांसें
लम्हों को आहें
भरते देखा
अमृता के शब्दों में
दिन को सोते देखा
सूरज की गलियों में
बाज़ार
चाँद पर मेला लगते देखा
रिश्तों में हर मौसम का
आना - जाना देखा
अपने देश की…
ContinueAdded by Priyanka singh on August 31, 2013 at 5:00pm — 25 Comments
दरख़्तों से छुपा-छुपी खेलता हुआ
वो तीखी धूप का एक टुकड़ा
मेरे कमरे तक आने को बेचैन
हवा ज्यों तेज़ हो जाती
वो ताक कर मुझे
वापस लौट जाता
इतना रौशन है वो आज कि
उसके ताकने भर से
अँधेरे से बंद कमरे की
आंखें उसकी चमक से
तुरन्त खुल जाती हैं
बहुत नींद में रहता है कमरा
आंखें मिचमिचाता है
कुछ देर तक यूँही देख
फिर आँखें बंद कर लेता है
हम्म ....मुझे लग रहा है
आज धूप का ये टुकड़ा
बारिश…
ContinueAdded by Priyanka singh on August 12, 2013 at 12:13am — 30 Comments
वास्ता बस यूँ कि
यादें आती रहें जाती रहें
इसी बहाने कभी यूँही कह
मुस्कुरा लिया करेंगे
गुज़रती बेहाल सी
रफ़्तार भरी ज़िन्दगी में भी
इसी बहाने कभी यूँही कह
दो घड़ी थम जाया करेंगे
दुखती आँखों पर भी
थोड़ा रहम हो जायेगा
इसी बहाने कभी यूँही कह
आंखे मूंद तुम्हें
देख लिया करेंगे
खोलती नहीं दुपट्टे की
वो गांठ चुभती है जो
ओढ़ने में….इसी बहाने
कभी यूँही कह तुम्हें
महसूस कर लिया…
ContinueAdded by Priyanka singh on July 29, 2013 at 10:50pm — 15 Comments
जब सोचने का नज़रिया
बदल जाये तो
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं
खो जाया करती हैं...
काफिले के संग
चल निकलो तो बात अलग,
वर्ना परछाईं भी अक्सर
साथ छोड़ जाया करती है...
वो लोग अलग होते हैं
जो डूब के पार निकलते हैं,
हौसलों से तो बिन पंख भी
ऊँची उडान भरी जाया करती…
Added by Priyanka singh on July 17, 2013 at 10:52pm — 17 Comments
अब जो तुम ना लोटोगे तो
आओ फिर बटवारा कर लो
तुम अपने दिल से जो चाहो
वो सभी सोगातें रख लो....
हाँ मैं दोषी नहीं फिर भी चलो
मेरी गवाही तुम ले लो
गिनाते थे जो ऐब मुझ को
वो तुम अब लिख के दे दो.....
भर के रखे तुम्हारे लिए
अरमानो के पैमाने जो
जाते हुए उनका अंतिम
संस्कार खुद से कर दो
अब भी कोई बता दो
शर्त रखते हो तो
इस वक़्त उसे भी
आखिरी सलामी दे दो....
सूखे फूलो…
ContinueAdded by Priyanka singh on May 17, 2013 at 2:00am — 27 Comments
एक बीते वक़्त सा
कुछ भूल जाना अच्छा होगा
जिसके दामन में दुःख के सिवा
मन को भिगोते
गलतफहमियो के घने बादल,
शिकायतों की बिजलियां
गरजते - गडगडाते काले
शक के भरे बरसने को
बेकाबू सवालों के मेघ
और कुछ डरावनी रातें होंगी;
भूल जाना कुछ कड़वे शब्द
उनकी तपिश आँखों को
और कभी जो दिल को
जलाती रही ओस से भीगी,
ठंडी रातों में भी और
दर्द देती रही मेरे शांत पड़े
कानो को जो अकसर,
दर्द से कराह…
ContinueAdded by Priyanka singh on May 5, 2013 at 5:23pm — 27 Comments
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