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अभिनय कर तो लूँ

पर कच्ची हूँ

माँ पकड़ ही लेती है छुपाये गए

झूठे हाव भाव...

चुप रह कर सिर्फ सर हिला कर

उनकी बातों का जवाब देना

छत पर घंटों अकेले बिताना

रात भर जागना

और सुबह लाल आँखों से

माँ से कहना-

कुछ नहीं कल गर्मी बहुत थी

नींद नहीं आयी...

माँ ने भी कुछ न कह

बस पास बिठा कर कहा

चाय पियो आराम मिलेगा

वो तो समझ गयी...

काश मैं भी वो समझूं

जो वो मुझसे रोज़ न कहते हुए भी

अक्सर कह देती है

समझती हूँ माँ...

बस ये दिल नहीं समझता

इसे समझा दो.....माँ !!!!   

(मौलिक एव अप्रकाशित)

प्रियंका.......

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Comment

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Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 8:30pm

आदरणीय विजय सर ...बहुत बहुत शुक्रिया...

Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 8:30pm

आदरणीय सौरभ सर ....आपकी नज़र मिली रचना को...ख़ुशी हुई ....बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...

Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 8:28pm

सारिका जी ..शुक्रिया ...

Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 8:26pm

रचना की सराहना के लिए बहुत बहुत आभार जितेन्द्र सर…… 

Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 8:22pm

आदरणीय कुँती मैम ...आपकी नज़र का बहुत बहुत आभार ...

Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 8:03pm

आदरणीया विजय निकोर सर आपका बहुत बहुत आभार.....

Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 8:01pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय योगराज प्रभाकर सर ......

Comment by Priyanka singh on January 15, 2014 at 7:58pm

आदरणीय मीना जी रचना की पसंदगी का बहुत बहुत शुक्रिया। 

Comment by विजय मिश्र on January 15, 2014 at 4:22pm
बहुत सुंदर अभिव्यंजना ,साधुवाद प्रियंकाजी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 12:50am

नयी उमर की नयी भावनाएँ .. अच्छी रचना हुई है.

बधाई व शुभकामनाएँ

कृपया ध्यान दे...

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