बदलना
अच्छा है ....पर एक हद तक
और वो हद
खुद तय करनी होती है
ऐसी हद जिसके भीतर
किसी का दिल न टूटे
कोई रोये न....बीते लम्हें याद कर
वादे याद कर मलाल न करे
वो हद जो
दूर करे पर नफरत न पलने दे
याद रहे पर इंतज़ार न रहने दे
रिश्तों में बदलना
कभी भी सुख नहीं देता
चुभन...दर्द...अफ़सोस और
बेचैनी लिए
पल-पल ज़िन्दगी गिनता है
इन सब से परे
कितना आसान है
किसी बदलाव से पहले
बात करना .... गलतफ़हमियाँ मिटाना
हदों के पायदानों से निकल
कुछ कदम ''साथ'' चलना और
कुछ छूटने से पहले
अपने हासिल को ''अपना कहना''
हक जताना...गिला करना और
मनाना .....
हदें बेहतर हैं पर
बदलाव से पहले...हदें चुनने से पहले
झांके अपनों के मन में भी
शायद फिर
बदलाव की जरुरत न लगे.....
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
प्रियंका....
Comment
हदें बेहतर हैं पर
बदलाव से पहले...हदें चुनने से पहले
झांके अपनों के मन में भी
शायद फिर
बदलाव की जरुरत न लगे.....
बहुत ही सुन्दर प्रियंका जी!
इन सब से परे
कितना आसान है
किसी बदलाव से पहले
बात करना .... गलतफ़हमियाँ मिटाना
हदों के पायदानों से निकल
कुछ कदम ''साथ'' चलना और
कुछ छूटने से पहले
अपने हासिल को ''अपना कहना''
हक जताना...गिला करना और
मनाना .....................................सही कहा ,बहुत खूब ..हार्दिक बधाई आपको
//हदें बेहतर हैं पर
बदलाव से पहले...हदें चुनने से पहले
झांके अपनों के मन में भी
शायद फिर
बदलाव की जरुरत न लगे.....//
आपकी कविता के खयालों से प्रभावित हूँ. विशेषकर उनकी ताज़गी से, आपकी कलम के सुगम प्रवाह से।
पढ़ते-पढ़ते जैसे कोई कटु सत्य सरलता से गले के नीचे उतर गया, और सीख भी दे गया...
//झांके अपनों के मन में भी, शायद फिर, बदलाव की जरुरत न लगे// ... किसी भी अवस्था में हम प्राय: अपने किए को ठीक मानते हैं, अपनी सोच/अपने विचार को निर्विवाद मानते हैं, और तनिक भी नहीं सोचते कि ऐसा करते हुए हमने स्वयं पर अहं की एक और परत लगा ली है। अत: हम कितने बड़े झूठ में जीते हैं?...और आपकी कविता ने कितना बड़ा सच सामने कर दिया है।
इस अच्छी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय प्रियंका जी। आशा है आपकी और रचनाएँ शीघ्र मिलती रहेंगी।
प्रियंका जी
बड़ी सुन्दर और परिपक्व कविता i बेहतरीन शब्द संयोजन i मुग्ध मन i वाह--- !
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