अध्याय
एक छुवन से मेरा रिश्ता था,
वो पल,
कुछ खास था,
बेचैन था,
कहीं न कहीं,
अविश्वनीय था,
अकल्पनीय था,
जिन रास्तों ने मुझे रोका था,
वो दर्द असहनीय था,
कष्टकारी था,
जिस तराजू पे,
मेरे अरमान तौल दिए गए थे,
जिस बाजार में,
मेरे मोल भी न थे,
कहीं न कहीं,
वो मेरे संवेदनाओ से जुड़ा था,
एक आशा की बुनियाद,
अधूरे वक्त का धब्बा,
रात का रुखापन,
अब आत्मा का,
एक अध्याय बन गया था,
एक अध्याय बन गया था.
मौलिक व अप्रकाशित
yatindra pandey
Comment
hailo
sandeep ji, saurabh ji, aur yogendra ji, aap sabhi ka bahut bahut
dhanyvaad
apna bharosa banaye rakhe
yatindra
सुन्दर भावाभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकारें यतीन्द्र जी! सादर,
पल विशेष को जिस तल्लीनता से जीने का प्रयास हुआ है वह रोचक है.
संवेदनशील मनस की संप्रेषणीयता को हार्दिक बधाई
बहुत खूब यतीन्द्र जी
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