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अध्याय

 

एक छुवन से मेरा रिश्ता था,

वो पल,

कुछ खास था,

बेचैन था,

कहीं न कहीं,

अविश्वनीय था,

अकल्पनीय था,

जिन रास्तों ने मुझे रोका था,

वो दर्द असहनीय था,

कष्टकारी था,

जिस तराजू पे,

मेरे अरमान तौल दिए गए थे,

जिस बाजार में,

मेरे मोल भी न थे,

कहीं न कहीं,

वो मेरे संवेदनाओ से जुड़ा था,

एक आशा की बुनियाद,

अधूरे वक्त का धब्बा,

रात का रुखापन,

अब आत्मा का,

एक अध्याय बन गया था,

एक अध्याय बन गया था.

 

 

मौलिक व अप्रकाशित

yatindra pandey

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Comment

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Comment by yatindra pandey on June 4, 2013 at 9:30pm

hailo

sandeep ji, saurabh ji, aur yogendra ji, aap sabhi ka  bahut bahut

dhanyvaad

apna bharosa banaye rakhe

yatindra

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 4, 2013 at 12:36pm

सुन्दर भावाभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकारें यतीन्द्र जी! सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 4, 2013 at 8:45am

पल विशेष को जिस तल्लीनता से जीने का प्रयास हुआ है वह रोचक है.

संवेदनशील मनस की संप्रेषणीयता को हार्दिक बधाई

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:15pm

बहुत खूब यतीन्द्र जी 

कृपया ध्यान दे...

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