ख्वाबों के दिन
ख्वाबों के दिन
कब मन को तड़पाते नहीं !
सुबह की पहली किरण
जब खिड़की पर थाप देती,
चिड़ियों की चहचहाहट से
जब खुलती हैं आँखें -
ज़िंदगी एक नयी करवट लेती हुई
बिस्तर की सलवटों पर
सिकुड़ी सिमटी सी , क्यों
तटस्थ हो जाती है ?
वक़्त का हर पल
एक सुनहरा ख्वाब दिखलाता है.
कुछ सपनों के दिन,
कुछ अधूरी रातें,
खुले नैनों के द्वार से
कहाँ दौड़े चले जाते है ?
एक कसमसाहट सी होती है -
अंगड़ाई लेती हुई,
सूर्य चंद्र स्वर गिनकर
पहला कदम धरती पर रखती हूँ.
दिन की शुरूआत हर सुबह
सिपाहियों से कतार में खड़ी
कई चुनौतियाँ देती है -
घड़ी की सुई की टिक टिक के साथ,
उतरते ही गले से पहले निवाले सम,
ख्वाबों के दिन , शून्य में
विलीन हो जाते हैं. ....और
जीवन के जंग का एक नया दौर
मेरे हिस्से में टँक जाता है .
शाम को एक युद्ध जीत कर भी
सांसों को चैन मिलता नहीं.
व्यथित मन तड़पता रहता है
चुनौती बनाकर -
ख्वाबों के दिन , सपनों की रातें.
(मौलिक व अप्रकाशित रचना)
Comment
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीया सादर बधाई स्वीकारें इस लाजवाब रचना हेतु
सौरभ जी , आप रचनाओं में छिपे गूढ़ तत्वों को पहचान जाते हैं.यह आपकी खूबी है . मुझे हमेशा आपकी आलोचनाओं की अपेक्षा रहती है ......सादर / कुंती
भैया राम, वंदना जी ,आबीद जी, व जितेंद्र जी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद.सादर
विजय जी , आपका आशिर्वाद ऐसे ही बनी रही .सादर
आदरणीया कुंती जी:
//सुबह की पहली किरण
जब खिड़की पर थाप देती,//
//ज़िंदगी एक नयी करवट लेती हुई
बिस्तर की सलवटों पर
सिकुड़ी सिमटी सी//
//कुछ सपनों के दिन,
कुछ अधूरी रातें,
खुले नैनों के द्वार से//
//दिन की शुरूआत हर सुबह
सिपाहियों से कतार में खड़ी
कई चुनौतियाँ देती है -//
//जीवन के जंग का एक नया दौर
मेरे हिस्से में टँक जाता है .//
एक ही रचना में इतने सारे, इतने सुंदर भाव ...
किस-किस की प्रशंसा करूँ ... जितनी प्रशंसा करूँ कम है।
हार्दिक ... हार्दिक बधाई।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
आदरणीया कुन्ती जी,सुन्दर रचना///सादर बधाई
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