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ख्वाबों के दिन

ख्वाबों के दिन
ख्वाबों के दिन
कब मन को तड़पाते नहीं !
सुबह की पहली किरण
जब खिड़की पर थाप देती,
चिड़ियों की चहचहाहट से
जब खुलती हैं आँखें -
ज़िंदगी एक नयी करवट लेती हुई
बिस्तर की सलवटों पर
सिकुड़ी सिमटी सी , क्यों
तटस्थ हो जाती है ?
वक़्त का हर पल
एक सुनहरा ख्वाब दिखलाता है.
कुछ सपनों के दिन,
कुछ अधूरी रातें,
खुले नैनों के द्वार से
कहाँ दौड़े चले जाते है ?
एक कसमसाहट सी होती है -
अंगड़ाई लेती हुई,
सूर्य चंद्र स्वर गिनकर
पहला कदम धरती पर रखती हूँ.
दिन की शुरूआत हर सुबह
सिपाहियों से कतार में खड़ी
कई चुनौतियाँ देती है -
घड़ी की सुई की टिक टिक के साथ,
उतरते ही गले से पहले निवाले सम,
ख्वाबों के दिन , शून्य में
विलीन हो जाते हैं. ....और
जीवन के जंग का एक नया दौर
मेरे हिस्से में टँक जाता है .

शाम को एक युद्ध जीत कर भी
सांसों को चैन मिलता नहीं.
व्यथित मन तड़पता रहता है
चुनौती बनाकर -
ख्वाबों के दिन , सपनों की रातें.
(मौलिक व अप्रकाशित रचना)

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:37pm

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीया सादर बधाई स्वीकारें इस लाजवाब रचना हेतु 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 1:26am
"आदरणीया...कुन्ती जी, बहुत बहुत आभार आपका " हार्दिक शुभकामनायें
Comment by coontee mukerji on June 4, 2013 at 9:37pm

सौरभ जी , आप  रचनाओं में छिपे गूढ़ तत्वों को  पहचान जाते हैं.यह  आपकी खूबी है . मुझे हमेशा आपकी आलोचनाओं  की अपेक्षा रहती है ......सादर / कुंती

Comment by coontee mukerji on June 4, 2013 at 9:30pm

भैया राम, वंदना जी ,आबीद जी, व जितेंद्र जी आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद.सादर

Comment by coontee mukerji on June 4, 2013 at 9:27pm

विजय जी , आपका आशिर्वाद ऐसे ही बनी रही .सादर

Comment by vijay nikore on June 4, 2013 at 9:14pm

आदरणीया कुंती जी:

//सुबह की पहली किरण
जब खिड़की पर थाप देती,//

 

//ज़िंदगी एक नयी करवट लेती हुई
बिस्तर की सलवटों पर 
सिकुड़ी सिमटी सी//

 

//कुछ सपनों के दिन,
कुछ अधूरी रातें,
खुले नैनों के द्वार से//

 

//दिन की शुरूआत हर सुबह
सिपाहियों से कतार में खड़ी
कई चुनौतियाँ देती है -//

 

//जीवन के जंग का एक नया दौर
मेरे हिस्से में टँक जाता है .//

 

एक ही रचना में इतने सारे, इतने सुंदर भाव ...

किस-किस की प्रशंसा करूँ ... जितनी प्रशंसा करूँ कम है।

 

हार्दिक ... हार्दिक बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

 

 

 

Comment by ram shiromani pathak on June 4, 2013 at 6:31pm

आदरणीया कुन्ती जी,सुन्दर रचना///सादर बधाई

Comment by Vindu Babu on June 4, 2013 at 4:48pm
आदरणीय जिन्दगी अनेक आयामों को दर्शाती हुई बहुत अच्छी कविता प्रस्तुत की है आपने। गहन शब्दों और सार्थक उपमाओं के प्रयोग से कविता और निखर पड़ी है।
सादर बधाई आदरेया।
Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 12:07pm
सुन्दर रचना,बधाई स्वीकार करेँ!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 4, 2013 at 10:23am
आदरणीया...कुन्ती जी.. सुंदर पंक्तिया हारदिक बधाई

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