ये आदत अच्छी नही तुम्हारी
मेरा दिल जलाने की
तुम्हारा ही घर जलता है
आदत से बाज आ जाओ ....
न सुनते हो न समझते हो
बिना बात के मुझ पर बरसते हो
तुम्हारा ही चैन खोता है
आदत से बाज़ आ जाओ
यूँ आँखे क्यों दिखाते हो
यूँ मुझको क्यों डराते हो
तुम्हारा ही रूप बदलता है
आदत से बाज़ आ जाओ
यूँ मुझसे नज़रे क्यों चुराते हो
मुझे इतना क्यों तडपते हो
तुम्हारा ही दिल तड़पता है
आदत से बाज़ आ जाओ .....!!!!!
मौलिक व अप्रकाशित रचना
Comment
बहुत बढ़िया विचार रखे है आपने //अंडरलाइन //टंकण अशुद्धि है देख ले //मुझे इतना क्यों तडपते हो////
अपनी बात को मात्रा साधते हुए यदि कहें तो गेयता आ जाएगी। जिसकी लिए यह कही गयी उस पर भी अच्छा असर होगा। शायद उसे आपकी बात समझ आ जाए।
सादर!
नसीहतों से भरी रचना , सरल और सुन्दर !
बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ......
आदरणीय सौरभ पांडे जी नमस्कार
जी चलिए किसी ने तो सुना ही .......क्या पता उनके चक्कर में किसी और की ही आदत सुधर जाये ...हहह्हा
आपकी बात पर अवश्य अमल करूंगी ........अपना कीमती समय व सुझाव देने के लिए आभार व धन्यवाद सर जी ......
आदरणीय जी लक्ष्मन प्रसाद जी नमस्कार
.प्रतिक्रिया हेतु आभार व धन्यवाद।।।।।
आदरणीय वीनस केसरी जी सादर नमस्कार
जी आदत कहाँ एक दिन में बदलती है ...नसीहत तो दे ही दी देखते हैं कि कोई असर होता है की नही .....प्रतिक्रिया हेतु
आभार व धन्यवाद
आदरणीय महिमा जी नमस्कार
इतने दिनों से कहाँ गायब थे भई .....?????? मैं अच्छी हूँ आप कैसी हो ???
और किसकी बजाई ये न पूछिये बस बजा डाली ....हाहाहा :) :) :)
आदरणीय गीतिका जी नमस्कार
सर्वप्रथम तो शुभकामनाओ के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका .....आदत से बाज आजा ओ // के बजाये बाज आदत से आजा ओ भी उपयुक्त लग रहा है ..लेकिन अब तो इसे बदलना मुश्किल है ....अगली रचना में देखते हैं ......... :) :) बेहद शुक्रिया आपका ...आगे भी भूल सुधर करती रहे ...........धन्यवाद
आदरणीय आबिद अली जी नमस्कार
रचना को पसंद हेतु आभार व धन्यवाद ...
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