!!!-ः दोहे:-!!!
पानी - पानी हो रही, लोकतंत्र सरकार।
हर क्षेत्र में असफल है, देश विदेश करार।।1
पानी नकसिर चढ़ गया, लोक तंत्र बेहाल।
जल संसाधन लूटता, बोतल भर कर माल।।2
जल संकट से घिर गया, अब यह पृथ्वी लोक।
जन मन रंजन कर रहा, नहि भविष्य का शोक।।3
सुबह बाल रवि तेज है, प्रखर प्रचण्डहि धूप।
सलिल अंबु जीवन लिए, मिलते नहि नल कूप।।4
जल ही जीवन जान लें, नीर वारि पय तोय।
पानी बिना सृष्टि नहीं, धरा हवा नभ कोय।।5
जीवन जलधि शरीर है, प्राण हुए चैतन्य।
श्वांस सधे तन साधना, नीर पिए मूर्धन्य।।6
पानी जैसा होइए, कोरा रंग दिखाय।
जाति धरम कुल वर्ण में, सतरंगी हो जाय।।7
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ........................... |
आ0 मंजरी जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन से मेरा मान बढ़ गया। आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार। सादर,
आदरणीय केवल प्रसाद जी , आपने पानी पानी ही कर दिय. बधाई इस सामायिक चित्रण के लिए
आ0 कुन्ती मैम जी, स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 विजय सर जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राजेश भाई जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,
बहुत ही बढि़या
जीवन जलधि शरीर है, प्राण हुए चैतन्य।
श्वांस सधे तन साधना, नीर पिए मूर्धन्य।।6
पानी जैसा होइए, कोरा रंग दिखाय।
जाति धरम कुल वर्ण में, सतरंगी हो जाय।।
ये दोनों तो बहुत-बहुत अच्छे लगे
राजनेतिक स्थिति को उजाकर करते बहुत ही सुंदर व सटीक दोहे / सादर / कुंती
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