वो आया था और सच्चाई बता के चला गया,
बुरा ना कहो उसे जो हाथ छुडा के चला गया|
वो भी भला था फ़क्त इक दुआ देके देख लो,
जो मेरी रूह को खुदा से मिला के चला गया|
मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया|
सुना था कहीं इंसान बसते हैं यहीं ज़मीन पे,
वो आईने में मेरा चेहरा दिखा के चला गया|
दम आख़िरी था, मुस्कान चेहरे पे आ ही गयी,
हँसते हुए वो दुनिया को रुला के चला गया|
"मौलिक और अप्रकाशित"
Comment
sunder
//दम आख़िरी था, मुस्कान चेहरे पे आ ही गयी,
हँसते हुए वो दुनिया को रुला के चला गया|//
बधाई।
विजय निकोर
मैं बादल था बरसना था कहीं खेतों की ज़मीं पे,
वो हवाओं को ही सागर में छुपा के चला गया|
सुना था कहीं इंसान बसते हैं यहीं ज़मीन पे,
वो आईने में मेरा चेहरा दिखा के चला गया|.................बहुत खूब.
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