वैसे तो वक्त किसी के लिए ठहरता नहीं,
उसे रोके बिना दिल हमारा भी भरता नहीं|
आने वाले पलों को खुशामदीद आज करलें
यूं ही तो आने वाला वक्त बदलता नहीं|
क़दमों की गर्मी से पहाड़ को बना दें पानी
रंगीनियों में तो बर्फ भी पिघलता नहीं|
तूफानों से कतरा कर निकलते हैं तिनके
जिस्म वो है किसी दर्द में सिमटता नहीं|
जांबाज़ खेलते हैं आने वाली सदीयों से
आज के पलों से अब मन बहलता नहीं|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
अरुन कुमार जी, मध्यम बहर पर ही आधारित है
विजय मिश्र जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपकी बधाई के लिए
जीतेन्द्र पस्तारिया जी, बहुत शुक्रिया आपने इसे पसंद किया
डॉ बब्बन जी, आपकी दाद के लिए तहे दिल से शुक्रिया
हरीश उप्रेति जी, बहुत शक्रिया आपकी दाद के लिए
आदरणीय कृपया ग़ज़ल की बहर बता दें ताकि कुछ कहने में आसानी हो सके. सादर
Ati Sundar !
सुन्दर रचना......
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