क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
जिसका विधान न हो!
न अनुनय के शब्द रहे
तेरी प्रार्थना रिक्त रहे
और प्रार्थी का तुझ
सम्मुख; कोई मान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
धूप आई झुलसाती
चाँद रात गल जाती
मृतक देह का फिर भी
क्यों अवसान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
दीपशिखा सा चिर जलना
अंध प्रश्न का तो हल ना
उस अनंत अविधि में भी
कुछ समाधान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
चरणध्वनी गुम होती सी
रक्त प्रवाहिनी सोती सी
रैना मेरे घर ठहरी की
कोई विहान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
पदचिन्हों की आहट पाती
राह स्वयं तो न चल पाती
कोई चले तो कैसे की
पग के निशान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
दृष्टी नित होती धुंधली
बीते कल में थी उजली
घना छा रहा धुंध किन्तु
नव ज्योतिर्मान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
गीतिका 'वेदिका'
मौलिक प्रकाशित
Comment
श्याम नारायण जी! आपका आभार!!
आदरनीय रविकर जी! आपकी अपने आप में सबसे अनोखी काव्यगत बधाई पर तो मन प्रसन्न हो जाता है। शुक्रिय!!
आपने रचना की के मर्म को समझा,, आपकी बेहद आभारी हूँ आदरणीय अरुण जी !!
आपका बहुत बहुत आभार आपने रचना को सराहा आदरणीय शालिनी जी!!
आदरणीय जीतेन्द्र जी! आपने व्यथा की पराकाष्ठा को समझा,, आपकी तहे दिल से शुभाकामनाएँ स्वीकारती हूँ
प्रिय गीतिका जी
बहुत सुन्दर भाव प्रवण नवगीत प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई
संवेदनाओं को सशक्त स्वर देती आपकी कलम की संभावनाओं पर मन बहुत आश्वस्त होता है
बस इस प्रस्तुति में गेयता कहीं कहीं बाधित लगी..मात्रिकता पर साधने से इससे बचा जा सकता था.
हृदय से बहुत बहुत शुभकामनाएँ
सस्नेह
चरणध्वनी गुम होती सी
रक्त प्रवाहिनी सोती सी
रैना मेरे घर ठहरी की
कोई विहान न हो
बहुत सुंदर रचना .. बधाई आप को गीतिका जी
दीपशिखा सा चिर जलना
अंध प्रश्न का तो हल ना
उस अनंत अविधि में भी
कुछ समाधान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
गीतिका जी,अंतस की पीड़ा को व्यक्त करती .....मन के अंतर्द्वंद को मुखरित करती सुन्दर रचना ....बधाई हो !
आदरणीया गीतिका जी:
// दीपशिखा सा चिर जलना
अंध प्रश्न का तो हल ना
उस अनंत अविधि में भी
कुछ समाधान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …! //
बहुत ही सुन्दर भाव हैं। आपको हार्दिक बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत ही मर्मस्पर्शि रचना ,प्रस्तुतिकरण ,शिल्प - शैली की दृष्टि से अति उत्तम , बार बार पढ़ने को मन करे.
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