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ग़ज़ल : अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी

बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122, 2122, 2122, 212

पापियों के पाप से देखो धरा भरने लगी
अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी,

ढोंगियों की भीड़ है अपराधियों का राज है,
सत्यता इंसानियत इंसान में मरने लगी,

रंग बदला रूप बदला और बदली है नीयत,
आदमी की तेज बुद्धी घास है चरने लगी,

लोभ ने अंधा किया पागल हवस की भूख ने,
हादसें यूँ देख कर अब रूह तक डरने लगी,

एक ही झटके में देखो हो गई बर्बादियाँ,
मेघ से वर्षा तबाही जोर की झरने लगी..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Sumit Naithani on June 28, 2013 at 4:05pm

लोभ ने अंधा किया पागल हवस की भूख ने,
हादसें यूँ देख कर अब रूह तक डरने लगी, सुंदर रचना भाई जी 

Comment by विजय मिश्र on June 27, 2013 at 6:04pm
वर्तमान में मानवीय मूल्यों को आपने यथारूप उभारा है ,अगर यह बीभत्स है तो है ,आप क्या कर सकते हैं ?
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:25pm

आदरणीया कुंती मुखर्जी जी "ये प्राकृतिक आपदाएँ है इंसान क्या करे" माफ़ कीजिये किन्तु मैं आपके कथन से सहमत नहीं हूँ. ये प्राकृतिक आपदा अवश्य है किन्तु इसका कारण कौन है? इसका जिम्मेदार कौन है?. प्राकृति के साथ जिस तरह से खिलवाड़ किया जा रहा है यह उसी का फल है, कुछ लोग अपराध कर रहे हैं और कुछ लोग सह रहे हैं तो अपराधी दोनों ही हुए न. गेहूँ के साथ घुन तो पिसता ही है, और जहाँ तक बात समस्त इंसानों को कोसने की है तो ऐसा कुछ मैंने ग़ज़ल में नहीं लिखा कृपया एक बार पुनः देख लें. सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:06pm

हार्दिक आभार आशीष भाई स्नेह बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:06pm

धन्यवाद भाई केवल प्रसाद जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:05pm

हार्दिक आभार आदरणीया सरिता भाटिया जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:05pm

धन्यवाद आदरणीया गीतिका वेदिका जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:05pm

हार्दिक आभार अनुज राम शिरोमणि पाठक जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:03pm

आदरणीय अजय कुमार शर्मा जी मुझे तो नीयत उचित ही लगा इस हेतु उपयोग किया, यदि कुछ कमी है तो कृपया अवगत करायें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 5:02pm

हार्दिक आभार भाई जीतेन्द्र जी

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