गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार
डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गुरुदेव श्री अभी अभी अइसन आभास हुआ कि आपने याद किया है अउर हम ऑनलाइन आये तो आपकी टिपण्णी मिल गई, ई सचमुच मा आपने याद किया हुआ है. गुरुदेव श्री आपने बताया तो था "ई प्रलयवा आता है" . यदि आप कन्फुजियाई जांयेंगे तो हमरा का होगा.
एक तो इस बार ये "मिसरा" साहब परेशान किये हैं कछू समझ नहीं आवत बा गुरुदेव श्री.
ए अरुन अनन्त भाई, ई प्रलयवा आता है कि आती है, जी ????????
हम सचकी पूरा कन्फ़ुजिया गये हैं.. सच्ची-मुच्ची..
भइया, बिहार राज्य का हवा भी अइसने होता है. तिसपर पटना तो राजधानी है.. :-))
अच्छा हुआ तीने दिन में हम निकल लिये गनेस भाई का लिट्टी-चोखा खा के.. .. :-))))))))))))
जय हो
अनेक अनेक धन्यवाद आदरणीय गुरुदेव श्री आपका आशीष यूँ ही मिलता रहा तो वीर छंद की अन्यान्य विशेषतताओं को भी हृदयंगम करने का प्रयास अवश्य करूँगा और आपके मुख से वाह वाही भी बटोर लूँगा. पुनः हार्दिक आभार आपका.
वीर छंद पर हुए इस प्रथम प्रयास केलिए बधाई.
वीर छंद की अन्यान्य विशेषतताओं को भी हृदयंगम करने का प्रयास करें
शुभम्
प्रलय होती नहीं भाई, प्रलय होता है. यदि मैं गलत होऊँ तो बताइयेगा.
सधन्यवाद
हादिक आभार अनुज
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया सरिता जी
हार्दिक आभार आदरणीया महिमा श्री जी
वाह भाई साहब क्या खूब सजीव चित्रण किया है अपने //इस मार्मिक वीर छंद के लिए हार्दिक बधाई आपको //सादर
प्रथम प्रयास सराहनीय है अरुण
बहुत बहुत बधाई
बहुत ही सुंदर प्रस्तुती आदरणीय अनंत जी .भाव बड़े ही स्पष्ट हैं .. बहुत-२ बधाई आपको
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