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मत्तगयन्द सवैया - अरुन शर्मा 'अनन्त'

आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 12:19pm

अहा आदरणीय गुरुदेव श्री आपसे बधाई पाकर बड़ी प्रसन्नता हो रही है, आपने मेरा दिन बना दिया आदरणीय गुरुदेव श्री हार्दिक आभार आपका. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 12:17pm

अनेक अनेक धन्यवाद आदरणीया सुशीला जी , भाई राम शिरोमणि पाठक जी ने कुछ बातें स्पष्ट कर दी हैं, इस छंद का विधान उदहारण सहित आपको यहाँ से मिल जायेगा. http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/x-7-2


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2013 at 6:08pm

शिव स्तुति और रचना प्रयास इस दोनों कार्य को सुन्दरता से साधने के क्रम में हुई इस छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई, भाई अरुन अनन्तजी.

शुभ-शुभ

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 6:00pm

 

आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
२१     १२१      १२१      १२११     २१   १२   ११   २११    २२    =मात्रा क्रम 

मत्तगयंद सवैया का एक पद (पंक्ति) = भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस गुरु गुरु =२११ २११ २११ २११ २११ २११ २११ २२
एक भानस = 3 वर्ण, तो सात भानस = 21 वर्ण और पीछे से दो गुरु गुरु वर्ण यानि कुल वर्णों की संख्या हुई, 21 + 2 = 23.

बाकी जानकारी के लिए आदरणीय सुशीला जी  आप छंद विधान ग्रुप ज्वाइन कर ले //सादर

Comment by sushila shivran on June 26, 2013 at 5:46pm

शिवोपासना  में भाव-सौन्दर्य लुभाता है। छंद का ज्ञान नहीं अत: उस पर टिप्पणी करने में असमर्थ। 
अरूण जी बधाई और कृपया छंद पर प्रकाश डालें।

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 3:23pm

धन्यवाद अनुज राम शिरोमणि पाठक जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 3:23pm

शुक्रिया आदरणीया सरिता जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 3:23pm

हार्दिक आभार आदरणीया गीतिका वेदिका जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 3:22pm

अनेक अनेक धन्यवाद आदरणीया शालिनी जी

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 12:36pm

वाह आदरणीय भाई अरुण जी  सुन्दरत शिव स्तुति //मेरे इष्ट देव है शिव //तो आनंद कई गुना बढ़ गया//हार्दिक बधाई 

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