आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
अहा आदरणीय गुरुदेव श्री आपसे बधाई पाकर बड़ी प्रसन्नता हो रही है, आपने मेरा दिन बना दिया आदरणीय गुरुदेव श्री हार्दिक आभार आपका. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये.
अनेक अनेक धन्यवाद आदरणीया सुशीला जी , भाई राम शिरोमणि पाठक जी ने कुछ बातें स्पष्ट कर दी हैं, इस छंद का विधान उदहारण सहित आपको यहाँ से मिल जायेगा. http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/x-7-2
शिव स्तुति और रचना प्रयास इस दोनों कार्य को सुन्दरता से साधने के क्रम में हुई इस छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई, भाई अरुन अनन्तजी.
शुभ-शुभ
आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
२१ १२१ १२१ १२११ २१ १२ ११ २११ २२ =मात्रा क्रम
मत्तगयंद सवैया का एक पद (पंक्ति) = भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस गुरु गुरु =२११ २११ २११ २११ २११ २११ २११ २२
एक भानस = 3 वर्ण, तो सात भानस = 21 वर्ण और पीछे से दो गुरु गुरु वर्ण यानि कुल वर्णों की संख्या हुई, 21 + 2 = 23.
बाकी जानकारी के लिए आदरणीय सुशीला जी आप छंद विधान ग्रुप ज्वाइन कर ले //सादर
शिवोपासना में भाव-सौन्दर्य लुभाता है। छंद का ज्ञान नहीं अत: उस पर टिप्पणी करने में असमर्थ।
अरूण जी बधाई और कृपया छंद पर प्रकाश डालें।
धन्यवाद अनुज राम शिरोमणि पाठक जी
शुक्रिया आदरणीया सरिता जी
हार्दिक आभार आदरणीया गीतिका वेदिका जी
अनेक अनेक धन्यवाद आदरणीया शालिनी जी
वाह आदरणीय भाई अरुण जी सुन्दरत शिव स्तुति //मेरे इष्ट देव है शिव //तो आनंद कई गुना बढ़ गया//हार्दिक बधाई
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