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कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ-

रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह । 

सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह । 

बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से । 

कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से । 

 करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।

कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥

मौलिक / अप्रकाशित

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Comment by अरुन 'अनन्त' on June 27, 2013 at 12:46pm

वाह आदरणीय वाह अत्यंत सुन्दर कुण्डलिया छंद बेहद मार्मिक चित्रण हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by रविकर on June 27, 2013 at 9:17am

बहुत बहुत आभार आदरणीय / आदरणीया

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 27, 2013 at 8:34am

आदरणीय रविकर जी सादर, सामयिक घटना का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है आपने जो छंद की हर पंक्ति से झलक रहा है.

Comment by coontee mukerji on June 27, 2013 at 2:04am

छोटेसेछ्न्द में शिव शक्ति की महिमा गान .अति सुंदर .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 26, 2013 at 10:07pm
आदरणीय ...रविकर जी, बहुत सुंदर पंक्तियां.।शुभकामनाऐ
Comment by वेदिका on June 26, 2013 at 9:51pm

// रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह//  क्या कहूँ??  दुःख को बयाँ करती छंद रचना !!

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