रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार
उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई रात
कुदरत हुई खून की प्यासी, प्रलय मचा है चारों ओर
कुपित शिवा जलमग्न हो गए,आया है कलयुग घनघोर
..............मौलिक व अप्रकाशित...............
Comment
प्रिया गीतिका जी हार्दिक अभिनन्दन बधाई हेतु
आदरणीय D P Mathur जी नमस्कार ,आपका हार्दिक आभार मेरे उत्साह वर्धन के लिए
मार्मिक चित्रण के साथ बहुत ही ज़ोरदार प्रस्तुति ///हार्दिक बधाई आदरणीया सरिता जी//////////
शानदार प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
सच कहा आपने आदरणीया सरिता जी!
यह विनाश की बेल हमने ही रोपी है और इसके फल हमे ही लीलने को आतुर है। दुःख की बात तो ये है की हममे से कोई प्रकृति के विरुद्ध कर्म करे, भुगतान समस्त मानव समुदाय को ही करना है।
प्रथम प्रयास निश्चित है बहुत सार्थक हुआ है, बधाई प्रेषित है!!
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार !
आदरणीया सरिता जी शायद कहीं ना कहीं हम ही इसके जिम्मेवार हैं सीख देती इस रचना की बधाई !
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