भारत है मेरा देश इस पे जान मैं दूंगा|
हुवा जो इसपे वार सीना तान मैं दूंगा||
खाया है इसका अन्न फिर हक भी हम देंगे|
इसकी बचाने लाज को हम जान भी देंगे||
आया जो शत्रु सामने उसे चीर हम देंगे|
यही मुल्क है हमारा ये पहचान हम देंगे||
ये हिन्द वतन मेरा मैं हूँ हिन्द का वासी|
है उर्दू मेरे दिल में और मैं हिंदी का भाषी||
ओ अम्न के दुश्मन अरे गद्दार तू सुन ले|
कहता जो खुद को पाक ओ नापाक तू सुन ले||
ये धरती हमारी इसे नापाक न करना|
आतंक की तू अपनी कोई चल न चलना||
तू देखता जो ख्वाब सच वो ख्वाब न होगा|
बनाया एक बांग्ला अब दूजा भी होगा||
गर ठान ली जो हमने तुझे जीने नही देंगे|
तुझे विश्व के नक़्शे में भी हम रहने न देंगे||
मौलिक व् अप्रकाशित
हरीश उप्रेती "करन"
Comment
धन्यवाद आदरणीय वीनस केसरी जी..........
वाह !!!
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
धन्यवाद आदरणीय ब्रजेश जी...
अच्छी कविता है आदरणीय! बहुत बधाई!
desh ko samarpit sunder rachna
देशभक्ति का जज्बा...बहुत सुन्दर
शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति भाई हरीश जी प्रयासरत रहें आप और भी अच्छा लिख सकते है //हार्दिक बधाई
बहुत बहुत शुक्रिया pragya ji.......
धन्यवाद आदरणीय जीतेन्द्र जी....
देश को नमन........................देश भक्ति की सुंदर रचना के लिए बधाई
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