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आखरी पन्नें

ज़िंदगी अपनी यादों की इक खुली किताब है
समेटे हुए हैं जिसमें हम अपने आस पास का दर्द
इसको खोलने से पहले बस इतना ख्याल रखना
आपके अश्क ढल न जाएँ दर्द मेरा देखकर

आखरी पन्नें मेरी ज़िंदगी की अंतिम किताब,अंतिम रचना,आखरी पैगाम कुछ भी हो सकता है
क्योंकि कल किसनें देखा है खुदा ने मेरे लिए भी कोई न कोई दिन तो एसा निश्चित किया होगा जिसका कल कभी न आयेगा मैं एक लेखक हूँ जिसे हर रोज़ कुछ न कुछ नया लिखने की चाह रहती है ,प्यास रहती है और मैं कुछ न कुछ लिखता ही रहता हूँ मैं जनता हूँ कि मैं अपनीं इस आखरी किताब आखरी रचना का आखरी पन्ना कभी पूरा नहीं कर पाऊंगा इअसमें जितने भी पन्नें जुड़ जाएँ यह फिर भी अधूरी ही रहेगी और यह आखरी पन्ना कभी कोई भी लेखक पूरा नहीं कर पाया चाहे वोह मुंशी प्रेम चाँद हों ,शैक्सपियर हो,मिल्टन हो या कोई और.और न ही कोई लेखक पूरा कर पायेगा चाहे वोह मेरे पिता श्री जयदेव विद्रोही हों या मैं
मेरे आखरी पन्नों में मेरे सबसे बड़े सहयोगी मेरे पिता श्री जयदेव विद्रोही मेरी धर्मपत्नी 'कुमुद' मेरे दोस्त ,दुश्मन ,अपने पराये ,यह दुनियां मेरा बेटा दीपंकर और मेरी बेटी दीपाली हैं कर्ज़दार मैं सबका ही हूँ क्योंकि किसी के लिए भी कुछ अधिक नहीं कर पाया ,उसके लिए भी कसूरबार मुझसे अधिक मेरी इमानदारी,मेरी शराफत,मेरी सच्चाई और मेरा भोलापन है जिसकी कलयुग के इस दौर में कोई ज़रुरत ही नहीं चालाकी चापलूसी,बेईमानीआज के दौर कि मांग है जो हमें कबूल नहीं
'इमानदारी कि हार काबुल है हमें'
'बेईमानी से जीतना हमें नहीं भाता'
हो सकता है सारी दुनियां को मुझसे कोई शिकायत हो और यह भी तो हो सकता है कि मुझे भी इस दुनियां से दुनियांवालों से शिकायत हो जहाँ प्यार मुहब्बत है वहां नफ़रत,गिला शिकवा,बेरुखी सब संभव है मेरे आखरी पन्नों में आपके सामने कुछ भी आ सकता है मेरी कहानी,कविता शे-र ,ग़ज़ल,दोहे यहाँ तक कि भजन भी अब यह फैसला आपको खुद करना है कि आपको क्या पढना है और क्या नहीं आपको क्या अच्छा लगता है क्या नहीं मैं नहीं जानता मैं तो केवल एक लेखक हूँ बस लिखता जाऊँगा आपको अच्छा लगे तो पढ़ लेना वर्ना पन्ना छोड़कर आगे बढ़ जाना मुझे हरगिज़ बुरा न लगेगा

दीपक शर्मा कुल्लुवी'
०९१३६२११४८६
०६-१२-२०१०.

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