ये सच है पुराना जाता नहीं
तो नया आता नहीं
पर पुराना जब
टूट कर जाता है
तो उसे बहुत याद आता है
कल तक जिस टहनी पर
वह इतना इतराता था
इतना ईठलाता था
आज बेबस पड़ा है
सड़कों पर आ खड़ा है
जरा सी हवा आई
और उड़ा ले गई
कल तक जो हवा अपने
आँचल सहलाती थी
आज वही हवा
उसे दर-बदर कर रही है
तकदीर बदलते
देर नहीं लगती
कल तक हरा
आज धूप मे पड़ा
खड़खड़ा रहा है
टूटकर उसे बहुत याद आ रहा है ....
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बृजेश नीरज जी, रविकर जी, जितेंद्र जी , मुकर्जी जी एवं माथुर जी धन्यवाद आप सभी के स्नेह का..... बनाए रखें ....
आदरणीय आमोद जी बहुत सुन्दर प्रयास है आपका। आपको हार्दिक बधाई! रचना को कुछ समय और देते तो अच्छा होता।
सादर!
पूरा न्याय किया है रचना ने निहित भाव से-
बधाई आदरणीय-
प्रकृति परिवर्तन का दूसरा नाम है. सुंदर प्रयास.
सच है तकदीर बदलते देर नही लगती , सुन्दर ।
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