Added by Amod Kumar Srivastava on October 10, 2024 at 2:37pm — No Comments
तीन दिन पहले से ही
सच कहूँ तो एक हफ्ते पहले से ही
पच्चईयाँ (नाग पंचमी) का
इंतजार रहता था ....
एक एक दिन किसी तरह
से काटते हुये
आखिर, पच्चईयाँ आ ही जाती थी
पच्चईयाँ वाले दिन
सुबह ही सुबह
अम्मा पूरा घर
धोती थी, हम सब को कपड़े
पहनाती थी
सुबह सुबह ही
गली मे
छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो
कहते हुये बच्चे नाग बाबा
की फोटो बेचते थे
हम वो…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on June 27, 2015 at 7:00am — 6 Comments
सुनो,
गर्मी बहुत है
अपने अहसासों की हवा
को जरा और बहने दो
यादों के पसीनों को
और सूखने दो
सुनो,
गर्मी बहुत है
गुलमोहर के फूलों
से सड़कें पटी पड़ी हैं
ये लाल रंग
फूल का
सूरज का
अच्छा लगता है
अपने प्यार की बरसात को
बरसने दो
बहुत प्यासी है धरती
बहुत प्यासा है मन
भीग जाने दो
डूब जाने दो
सुनो,
गर्मी बहुत है ....
Added by Amod Kumar Srivastava on June 25, 2015 at 7:20am — 5 Comments
शाम हो रही है
सूरज का तेज अब
मध्यम होता जा रहा है
शाम और खेल
का बड़ा अनूठा
सायोंग है
अब बस याद ही है
खेल और उसका खेला की
एक खेल था
ऊंच-नीच
समान्यतः यह खेल घर
के आँगन मे ही
खेलते थे, चबूतरे पर
नाली की पगडंडियों पर
हम सब ऊपर रहते थे
और चोर नीचे
हमे अपनी जगह बदलनी होती थी
और चोर को हमे छूना होता था
अगर छु लिया तो
चोर हमे बनना होता था
बड़ा…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on June 19, 2015 at 8:43pm — 4 Comments
हम छोटे छोटे थे
जब माँ
कोयले की राख़ से
गोले बनाती थी
हम भी बैठे बैठे
गोले बनाते थे
ये वाला मेरा
ये वाला तेरा
मेरा गोला ज्यादा मोटा
तेरा वाला पतला गोला
धूप मे गोले
फैला दिये जाते
सूरज अपनी तपन से
हवा अपने वेग से
गोले को सूखा देते
शाम को अम्मा
उन्हे उठाती
तब भी हम लड़ते
ये तेरा वाला
ये मेरा वाला
अंगीठी मे एक एक करके
गोले जलाये…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on April 9, 2015 at 1:30pm — 2 Comments
फिर चल पड़ी है
दिन मे तेज अंधड़
चिलचिलाती धूप
और उसमे गुलमोहर के फूल
लंबी सड़कों के दोनों और
इकठ्ठा होता पत्तियों का मलबा
और हवा से उड़ते हुये
उनका सरसराना ....
पलाश का फूल भी खिल रहा है
ओ-हो मौसम बदल रहा है ....
सुनो ...
मेरी यादों की रजईयों
को थोड़ी धूप दिखा देना
और फिर सहेज कर रख देना
जब ठंड आएगी
रिश्तों की गर्माहट के लिए
निकाल लेना फिर से .... रज़ाई
लक्ष्मण…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on March 11, 2015 at 9:07pm — 9 Comments
उम्मीद तो
मुझे अपने आप से भी थी
उम्मीद तो
मुझे अपनों से भी थी ...
सोचता तो
अपने के लिए भी था
सोचता तो
दूसरों के लिए भी था
सुधार की गुंजाईश
अपने आप से भी थी
सुधार की गुंजाईश
दूसरों से भी थी
इन्हीं ...
उहापाहो में
सफर काटता रहा ...
जब उम्मीद
अपनी पूरी नहीं हुयी
सोच अपनी न रही
सुधार खुद को न पाया
तो शिकायत
अब किससे
और…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on February 25, 2015 at 8:58pm — 11 Comments
जीवन कठिनाईयों मे
गुजर रहा है ऐ मौला
रात गुजर रही है
बगैर नींद के ऐ मौला
बेपरवाह एक जुगनू
खलल डाल रहा ऐ मौला
सफर मे चला जा रहा हूँ
मंजिल की तलाश मे ऐ मौला
कहता बहुत हूँ, चीखता बहुत हूँ
सुनता कोई नहीं ऐ मौला
काली रात कटेगी, सुबह तो होगी
इंतजार मे हूँ ऐ मौला
जख्म इतना दिया कि
इंतहा कि हद कर दी
जख्म के दर्द का अहसास न रहा ऐ मौला
खारा हो गया हूँ जैसे समंदर का पानी
अब…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on February 24, 2015 at 8:07pm — 14 Comments
सुनो,
है ईश्वर ऐसा करो
मुझे पागल कर दो
शरीर से दिमाग का
संपर्क खत्म कर दो
मेरे एहसास
मेरी प्यास
मेरी तृष्णा
मेरा प्यार
मेरी लालसा
से मेरा नाता खत्म कर दो
न मर्म रहे
न भावना
न दर्द रहे
न रोग ....
सुनो....
है ईश्वर ऐसा करो
मुझे पागल कर दो
जीवन तो तब भी रहेगा
दौड़ेगा रगों मे खून
देखुंगा, सुनुंगा
खा भी लूँगा
दोगे कपड़े तो…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on January 31, 2015 at 8:00pm — 7 Comments
डरी, सहमी सी लगती है
अंदर जो आवाज है
जिसे अन्तरात्मा कहते हैं
वो चुप है
इस निःशब्द वातावरण मे
वह चीख बनके
निकलेंगे कब ?
जिंदगी, आखिर ....
शुरू होगी कब ?
खुले मन से हँसी
आएगी कब ?
कब खिलखिलाकर
सच सच कहूँ तो
दाँत निपोर कर
आखिर हँसेंगे कब ?
बरसों से इस जाल मे बंधी
उसी राह पर चलते – चलते
आखिर हम बदलेंगे कब ?
थोड़ी आस,
थोड़ा विश्वास
धीरे धीरे पिघलता…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on August 3, 2014 at 6:30pm — 7 Comments
धूल में दबी हुयी ये डायरी
जिसकी एक एक परत की हैं ये यादें
हर एक सफा तुम्हारी याद है
.... न जाने कहाँ कहाँ रखा उसे
..... आलमारी मे ठूसा
..... बक्से में दबाया
.... ऊपर टाँड़ पर रखा
अटैची मे रखा ....
उसके पन्नों के रंग उतर गए
मगर लिखावट वही रही
आज भी देखकर उन सफ़ों को
और आपके उन हिसाबों को देखकर
उन हिसाबों मे हमारा भी अंश हैं
जिन्हे आज देखकर महसूस करता हूँ
उन सफ़ों पे लिखा आपका हिसाब
दूध वाले…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 31, 2014 at 8:30pm — 10 Comments
याद आता है
वो अपना दो कमरे का घर
जो दिन मे
पहला वाला कमरा
बन जाता था
बैठक ....
बड़े करीने से लगा होता था
तख़्ता, लकड़ी वाली कुर्सी
और टूटे हुये स्टूल पर रखा
होता था उषा का पंखा
आलमारी मे होता था
बड़ा सा मरफ़ी का
रेडियो ...
वही हमारे लिए टी0वी0 था
सी0डी0 था और था होम थियेटर
कूदते फुदकते हुये
कभी कुर्सी पर बैठना
कभी तख्ते पर चढ़ना
पापा की गोद मे मचलना…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 28, 2014 at 10:06pm — 11 Comments
तमाम गैर जरूरी चीजें
गुम हो जाती हैं घर से चुपचाप
हमारी बेखबर नज़रों से
जैसे मम्मी का मोटा चश्मा
पापा जी का छोटा रेडियो
उन दोनों के जाने के बाद
गुम हो जाता है कहीं
पुराने जूते, फाउंटेन पेन, पुराना कल्याण
हमारी जिंदगी की अंधी गलियों से ....
हर जगह पैर फैलाकर कब्जा करती जाती है
हमारी जरूरतें, लालसाए
आलमारी में पीछे खिसकती जाती है
पुरानी डायरी, जीते हुये कप
मम्मी का भानमती का…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on May 2, 2014 at 7:59pm — 11 Comments
वो गंगा की धारा
वो निर्मल किनारा
जहाँ माँ थी लेटी
हमें कुछ न कहती
हमें याद है वो
निर्मल सा चेहरा
अभी कुछ था कहना
अभी कुछ था सुनना
याद आ रहा था
माँ का तराना
जिसे गाया करती थी
माता हमारी ...
उठाया करती
वो गाकर तराना
मगर आज वो लेटी
हमे कुछ न कहती
पानी था निर्मल
वो अश्रु की धारा
रोके न रुकी थी
वो आँखों की धारा
वही था वो सूरज
वही था…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on April 20, 2014 at 7:54pm — 6 Comments
लो ....
ये क्या मौसम बदलते ही
तुमने रिश्तों का स्वेटर
खोल दिया ...
एक एक फंदे
जो तुमने चढ़ाये थे
इतने जतन से
अचानक ही
उन्हे उतार दिया ....
इतने जल्दी तुम
भी बदल गए
इस मौसम की तरह
चलो ....
ऐसा करना
मेरी यादों की सलाईयों को
सहेज कर रख लेना
फिर कभी ठंड आएगी
और उस सलाईयों
पर अहसासों के ऊन से
फिर रिश्तों का स्वेटर
बना लेना ...
किसी…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on February 8, 2014 at 9:15pm — 10 Comments
किसको पता कि कौन हूँ मैं ....
कोई शब्द नहीं निःशब्द हूँ मैं ....
खुद के चित्कार में छुप जाता हूँ
मेरा अस्तित्व,
मेरी संवेदनाएं
सन्नाटों ने खूब पढ़ा है
मेरे अनकहे शब्दों को
और ठंडी चुभती सर्द हवाओं ने
महसूस करा है ....
मेरे शब्दों के एहसास को .....
बहुत कुछ कहता हूँ
दिन भर ....
तुमसे, सबसे
पर सच कहूँ तो
आज तक
मैं, सिर्फ निःशब्द हूँ .....
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Amod Kumar Srivastava on January 9, 2014 at 10:49pm — 20 Comments
आज गहरे अंतस में
न जाने कैसी
अजीब सी
छाया बन रही है
लगातार जारी है
समझने की नाकाम कोशिश ....
मगर छाया नहीं सुलझती
दौड़ रहा हूँ ...
बीते हुये कल के
हर एक के जानिब को
शायद वो हो ...
नहीं वो नहीं है ...
अच्छा वो हो सकता है
मगर कहाँ भागूँ
कितना भागूँ ...
बहुत दूर आ चुका हूँ
वापस जाना मुमकीन नहीं हैं
अंतस में
छाया और गहरी
होती जा रही…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on January 4, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
जाओ तुम और दूर चले जाओ...
जहां चाहो वहाँ चले जाओ
मगर जी लो न मन भर
एक बार मेरे साथ ....
मेरे ख्वाब... मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब ....
धीरे से जाना ...
आहट भी न करना
नींद न टूटने पाये मेरी
काँच से नाजुक हैं ये ...
मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब ....
कुछ तुम भी ले जाना
बहुत हसीन हैं ये
दुःख में हँसा देंगे ये
मुझसे भी प्यारे हैं ये ...
मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब .... मेरे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 21, 2013 at 8:25pm — 8 Comments
वो हँसना, वो रोना
वो दौड़ना, वो भागना
वो पतंगे, वो कंचे
जने कहाँ छूट गए...
अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए...
वो खेला, वो मेला
वो संगी, वो साथी
वो गुल्ली, वो डंडा
वो चोर, वो सिपाही
जाने कहाँ छूट गए ....
अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए...
वो खुशी, वो हंसी
वो खो-खो, वो कबड्डी
वो आईस-पाईस, वो ऊंच-नीच
जाने कहाँ छूट गए....
अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए...
अम्मा की रोटी, उनकी…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 15, 2013 at 8:30pm — 4 Comments
बातें खत्म हो गई जिसका
जिक्र हम किया करते थे ...
वो गलियाँ कहीं
खो गईं जिनपे हम
चला करते थे ...
न शाम रही न धुआँ
किसी एक भी
चराग में...
वो चले गए जिन्हे
हम देखा करते थे...
हमको क्या हक़ है
अब, किसी को कुछ कहने का ,,,
रास्ता वो सब छूट गए
जिनपे हम मिला करते थे ...
अब हमको क्या मारेगी
क्या, ये दुनियाँ की विरनिया
वो अंदाज और था जीने का
जब रोज मरा करते थे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 8, 2013 at 10:55am — 6 Comments
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