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हम तो बहुत दूर आ गए ....

वो हँसना, वो रोना 

वो दौड़ना, वो भागना 

वो पतंगे, वो कंचे

जने कहाँ छूट गए... 

अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए... 

वो खेला, वो मेला 

वो संगी, वो साथी 

वो गुल्ली, वो डंडा 

वो चोर, वो सिपाही 

जाने कहाँ छूट गए ....

अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए... 

वो खुशी, वो हंसी 

वो खो-खो, वो कबड्डी 

वो आईस-पाईस, वो ऊंच-नीच 

जाने कहाँ छूट गए.... 

अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए... 

अम्मा की रोटी, उनकी अंगीठी 

पापा का प्यार, उनका दुलार 

वो हाफ-पैंट, सर में तेल 

वो नाक का बहना, बाजुओं से पोछना

असपे अम्मा की डांट... 

क्या कहूँ... वो बारिश का होना 

उसमे उछलना 

जाने कहाँ छूट गया .... 

अरे...... हम तो बहुत दूर आ गए... 

मौलिक व अप्रकाशित.... 

Views: 355

Comment

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Comment by Amod Kumar Srivastava on December 21, 2013 at 8:06pm

धन्यवाद  आ0 गिरिराज  जी॥ 

Comment by Amod Kumar Srivastava on December 21, 2013 at 8:05pm

बहुत बहुत आभार आ0 गोपाल जी .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2013 at 5:48pm

आदरणीय , पिछ्ले दिनो की , किशोरावस्था की यादे सच मे आज पप्यारी लगती हैं !! रचना के लिये आपको बधाई !!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 16, 2013 at 1:57pm

आमोद जी

अच्छी कविता है i

कभी कभी मन अतीत में खोता ही है i

 

कृपया ध्यान दे...

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