सुनो,
गर्मी बहुत है
अपने अहसासों की हवा
को जरा और बहने दो
यादों के पसीनों को
और सूखने दो
सुनो,
गर्मी बहुत है
गुलमोहर के फूलों
से सड़कें पटी पड़ी हैं
ये लाल रंग
फूल का
सूरज का
अच्छा लगता है
अपने प्यार की बरसात को
बरसने दो
बहुत प्यासी है धरती
बहुत प्यासा है मन
भीग जाने दो
डूब जाने दो
सुनो,
गर्मी बहुत है ....
Comment
आप इस मंच पर अभी सैलानी हैं आदरणीय. ऐसे में सदस्यों को सिर्फ़ ’सुनाना’ समझ में आता है. ’सुनना’ भी चाहिये को समझने में अभी समय लगेगा. बहरहाल, आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी है. इसके कथ्य में उद्विग्नता है तो है लेकिन एक ठहराव भी है. यही आकर्षित करता है.
शुभेच्छाएँ
अच्छी लगी आपकी रचना ! बधाई आपको । एक प्रश्न है आपसे - कभी आप दूसरे रचना कार की कोई भी रचना पढ़ी है , अगर आपने पढ़ी है , क्षमा चाहूँगा , मेरी अधूरी जानकारी के लिये ॥
सुन्दर! बधाई आ० अमोद जी!
बहुत सुन्दर रचना , बधाई आदरणीय आमोद जी.
आ0 आमोद भाई जी, सुंदर रचना के लिये बधाई. सादर
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