फिर चल पड़ी है
दिन मे तेज अंधड़
चिलचिलाती धूप
और उसमे गुलमोहर के फूल
लंबी सड़कों के दोनों और
इकठ्ठा होता पत्तियों का मलबा
और हवा से उड़ते हुये
उनका सरसराना ....
पलाश का फूल भी खिल रहा है
ओ-हो मौसम बदल रहा है ....
सुनो ...
मेरी यादों की रजईयों
को थोड़ी धूप दिखा देना
और फिर सहेज कर रख देना
जब ठंड आएगी
रिश्तों की गर्माहट के लिए
निकाल लेना फिर से .... रज़ाई
लक्ष्मण बूटी भी निखर रहा है
ओ-हो- मौसम बदल रहा है ....
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुंदर आदरणीय आमोद कुमार जी बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी से सहमत!
सुंदर कविता . बधाई आदरणीय आमोद जी
Aadarniya Amod Kumar Ji,
Sundar kavita ke liye badhai.
आदरणीय आमोद कुमार श्रीवास्तव जी, सुन्दर रचना ,बधाई आपको ! सादर
सुन्दर कविता !! हार्दिक बधाई !
मेरी यादों की रजईयों
को थोड़ी धूप दिखा देना
और फिर सहेज कर रख देना
जब ठंड आएगी
रिश्तों की गर्माहट के लिए
निकाल लेना फिर से .... रज़ाई
लक्ष्मण बूटी भी निखर रहा है
ओ-हो- मौसम बदल रहा है .... लाजवाब पंक्तियाँ आपको हार्दिक बधाई आ.आमोद कुमार जी |
सुन्दर कविता!! आपको बधाई!
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