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आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '

आखरी पन्नें (2) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी '

न देख ख्वाब यह साक़ी की कोई थाम लेगा तुझको
संभले हुए दिल तेरी महफ़िल में नहीं आते.........

ज़िन्दगी में इंसान बहुत कुछ जीतता है और बहुत कुछ हार जाता है लेकिन हार कभी नहीं माननी चाहिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कभी तो मंजिल मिलेगी मंजिल कभी न भी मिले तो कम से कम उसके करीब तो पहुँच जाओगे




कमीं रह गयी

ज़िन्दगी में तुम्हारी कमीं रह गयी
अपनीं यादें जहाँ थी,वहीँ रह गयी
दुनियां वाले लगाते रहे तोहमतें
अपनें हिस्से में ग़म,बेबसी रह गयी
ऐसा मुमकिन नहीं भूल पाओ हमें
हम जो रुखसत हुए आँखें नाम रह गयी
'दीपक कुल्लुवी' ना जानें कहाँ चल दिया
महफ़िल सजी की सजी रह गयी
कहते हैं जिंदा है, पर लगता नहीं
सांसें तो उसकी यहीं रह गयी

मैनें ज़िन्दगी में कभी भी समय बर्वाद नहीं किया चाहे मैं सफ़र में हूँ या शमशान में मेरी कलम निरंतर चलती ही रहती है I जो ज़हन में आता है कागज़ पे उतारता रहता हूँ इ घर में भी कागजों के ढेर लग चुके हैं I मेरी धर्मपत्नी इसी बात के लिए मुझसे बहुत दुखी रहती है I अब हम क्या करें जब तक दिन में कुछ लिख नहीं लिया तो ख़ाली ख़ाली सा लगता है I

कुछ न कुछ

मेरे शे-रों में कुछ न कुछ तो ज़रूर रहा होगा
वर्ना अश्क आपके,इस कदर न छलकते
अंधेरों में ही सही,चिराग जलाने चले आते हो
वर्ना मेरी मजार के आसपास,इस कदर बेबस न भटकते
मायूस होकर ना देखते,बंद फाइलों में तस्वीरें मेरी
मेरी यादों के लिए,इस कदर ना तरसते
यह तो 'दीपक कुल्लुवी' का वादा था याद रखेंगे
आप तो बेवफा थे,इस कदर बेवजह ना बदलते

आदमी को कभी भी अपनी ज़िन्दगी पर गुमान नहीं करना चाहिए न जानें उसकी मौत कैसी हो I उसे हमेशा बिनम्र होना चाहिए,दूसरों का भला करना चाहिए करम आपके ऐसे होने चाहिए की आपके जाने के बाद लोग बरसों आपको याद रखें I

कातिल हैं

तेरी बेरुखी तेरा ग़म
मेरी तकदीर में शामिल है
कभी तो करते हमपे यकीं
के हम भी तेरे काबिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
लाख जुदाई हो तो क्या
यादों में कभी हो ना कमीं
बचा लेंगे मंझधार से भी
हम ही तेरे साहिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
क़त्ल भी कर दो उफ़ ना करें
हँसते हँसते मर जाएंगे
ना ज़िक्र करेंगे दुनियां से
कि आप ही मेरे कातिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म----
हम 'दीपक' थे जल जाते खुद
क्यों आपने ज़हमत की ए-दोस्त
अफ़सोस है मुझे जलाने में
आप भी तो शामिल हैं
तेरी बेरुखी तेरा ग़म---

दीपक शर्मा कुल्लुवी'
09136211486
०7-12-3010.
क्रमश:

Views: 330

Comment

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 9, 2010 at 3:13pm
DHANYABAAD AGARWAL JI
SHER-O-SHAYARI APAI JAGAH HAI AUR HAQIKAT APANI JGAH
MAIN SABKO HAQEEKAT SE RUBRUH KARWANA CHAHTA HOON TAQI LOGON KO KUCH SEEKH MILE JO GALTIYAN HAMNE KI WOH DUSARE NA KAREN
Comment by satish mapatpuri on December 8, 2010 at 3:44pm
हम 'दीपक' थे जल जाते खुद
क्यों आपने ज़हमत की ए-दोस्त
अफ़सोस है मुझे जलाने में
आप भी तो शामिल हैं
दीपक जी, स्नेहिल अभिवादन. हर शेर बेहतरीन है, शुक्रिया.
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 2:40pm
बहुत खूब

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