बहर : २१२ २१२
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जो सरल हो गये
वो सफल हो गये
जिंदगी द्यूत थी
हम रमल हो गये
टालते टालते
वो अटल हो गये
देख कमजोर को
सब सबल हो गये
भैंस गुस्से में थी
हम अकल हो गये
जो गिरे कीच में
वो कमल हो गये
अपने दिल से हमीं
बेदखल हो गये
देखकर आइना
वो बगल हो गये
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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
ऐसी छोटी बहर में मुरद्दफ़ ग़ज़ल कह लेना ही अपने आप में हैरत की बात है और आगे कमाल यह की आपने अशआर में कमाल ही कर दिखाया है भाई
ढेरो दाद कबूल करें
शुक्रिया MAHIMA SHREE जी
देखकर आइना
वो बगल हो गये... :)) आदरणीय धर्मेन्द्र सर .. बहुत ही अच्छी गजल .. बहुत हार्दिक बधाई आपको
बहुत बहुत शुक्रिया shashi purwar जी
शुक्रिया विजय मिश्र जी
धन्यवाद Jitendra Pastariya जी
शुक्रिया coontee mukerji जी
शुक्रिया ram shiromani pathak जी
waah sundar gajal ,dharmendra ji muskaan bhi mil gayi isme भैंस गुस्से में थी
हम अकलहो गये"" वाह!
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