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वज्न 2122 2122 2122 212

बह्र ए रमल मुसम्मन महज़ूफ

 

लमहा-लमहा याद कोई दिल को आने क्यूँ लगे

रफ़्ता-रफ़्ता वर्क़े-माज़ी वो हटाने क्यूँ लगे       

 

इस मरासिम लफ़्ज़ से ही आजिज़ी होने लगी    

फ़ासिले हम को रिफ़ाकत में रुलाने क्यूँ लगे       

 

बेगुमाँ भाग आए थे जिनसे निगाहें हम बचा     

ढूँढ कर वो बेतलब ग़म फ़िर सताने क्यूँ लगे     

 

मुद्दतों से यूँ दबा जिसको रखा था दर्द वो

नज़्म करने में हमें इतने ज़माने क्यूँ लगे

 

ग़मगुसारों से हम अपनी दास्तां कैसे कहें  

दिल शिकस्ता आपको ऐसे दिखाने क्यूँ लगे

 

मिलने का वादा किया हो याद पड़ता ही नही

बेसबब वो रास्ते हम को बुलाने क्यूँ लगे     

 

तीरगी ही जब मुकद्दर बन गई, ऐ ज़िन्दगी!

ये उजाले तेरे जल्वों के जलाने क्यूँ लगे

 

वर्क़े- माज़ी= अतीत के पन्ने.  मरासिम= रिश्ते, मेलजोल. आजिज़ी= उकताहट.  रिफ़ाकत= दोस्ती. बेगुमाँ= सहसा

बेतलब= बिन बुलाए. दिल शिकस्ता= टूटा.  दिल तीरगी= अंधेरा

 

 

- मौलिक अप्रकाशित(संशोधित )

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Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2013 at 9:38pm

सिज्जू भाई , बहुत बेहतरीन गज़ल हुई भाई , सभी शे र लाजवाब हैं।  बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 17, 2013 at 8:05pm

 

बे2/गु1/माँ2/भा2

/गा2/ए1/थे2/जिन2/

से2/नि1/गा2/हें2/

हम2/ब1/चा2  

//////अ) - अलिफ़-वस्ल का नियम- यदि किसी शब्द के अंत में ऐसा व्यंजन आये जिसमें मात्रा न लगी हो और उसके बाद के शब्द का प्रथमाक्षर "स्वर" हो तो उच्चारण अनुसार पहले शब्द के अंतिम व्यंजन और दूसरे शब्द के पहले स्वर का योग किया जा सकता है 

जिंदगी यूँ भी गुज़र ही जाती 
क्यों तेरा राह गुज़र याद आया -(मिर्ज़ा ग़ालिब) 
(२१२२, ११२२, २२ - बहर-ए-रमल की एक मुज़ाहिफ सूरत)
यहाँ याद आया को यादाया अनुसार उच्चारण करके २२२ मात्रा गणना की गई है //////

 

-वीनस केसरी जी के पोस्ट से साभार

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 17, 2013 at 6:42pm

 बेगुमाँ भाग आए थे जिनसे निगाहें हम बचा-- fir se dekh lenge


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 14, 2013 at 11:44am

आदरणीय डॉ आशुतोष जी, वसुंधरा जी एवं अरुण जी आपका तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2013 at 10:35pm

बेहतरीन ग़ज़ल ..बधाई कबूलें ..

Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 5:18pm

बधाई...बहुत बहुत ... !!

Comment by Arun Sri on August 7, 2013 at 12:48pm

वाह ! बहुत ही बढ़िया गज़ल !


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Comment by शिज्जु "शकूर" on August 7, 2013 at 12:41pm

आदरणीया सीमा जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद


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Comment by शिज्जु "शकूर" on August 7, 2013 at 12:07pm

आपका आभार महिमा जी

Comment by MAHIMA SHREE on August 7, 2013 at 11:55am

बेगुमाँ भाग आए थे जिनसे निगाहें हम बचा
ढूँढ कर वो बेतलब ग़म फ़िर सताने क्यूँ लगे

मुद्दतों से यूँ दबा जिसको रखा था दर्द वो
नज़्म करने में हमें इतने ज़माने क्यूँ लगे
वाह वाह। । बहुत खूब। ।

आदरणीय शिज्जू जी। आपकी शानदार गजल को महीने की सर्वश्रेष्ट रचना सम्मान से सम्मानित होने के लिए . बहुत -२ बधाई आपको और शुभकामनाये।

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