For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वज्न 2122 2122 2122 212

बह्र ए रमल मुसम्मन महज़ूफ

 

लमहा-लमहा याद कोई दिल को आने क्यूँ लगे

रफ़्ता-रफ़्ता वर्क़े-माज़ी वो हटाने क्यूँ लगे       

 

इस मरासिम लफ़्ज़ से ही आजिज़ी होने लगी    

फ़ासिले हम को रिफ़ाकत में रुलाने क्यूँ लगे       

 

बेगुमाँ भाग आए थे जिनसे निगाहें हम बचा     

ढूँढ कर वो बेतलब ग़म फ़िर सताने क्यूँ लगे     

 

मुद्दतों से यूँ दबा जिसको रखा था दर्द वो

नज़्म करने में हमें इतने ज़माने क्यूँ लगे

 

ग़मगुसारों से हम अपनी दास्तां कैसे कहें  

दिल शिकस्ता आपको ऐसे दिखाने क्यूँ लगे

 

मिलने का वादा किया हो याद पड़ता ही नही

बेसबब वो रास्ते हम को बुलाने क्यूँ लगे     

 

तीरगी ही जब मुकद्दर बन गई, ऐ ज़िन्दगी!

ये उजाले तेरे जल्वों के जलाने क्यूँ लगे

 

वर्क़े- माज़ी= अतीत के पन्ने.  मरासिम= रिश्ते, मेलजोल. आजिज़ी= उकताहट.  रिफ़ाकत= दोस्ती. बेगुमाँ= सहसा

बेतलब= बिन बुलाए. दिल शिकस्ता= टूटा.  दिल तीरगी= अंधेरा

 

 

- मौलिक अप्रकाशित(संशोधित )

Views: 1278

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 5, 2013 at 8:04pm
""ग़मगुसारों से हम अपनी दास्तां कैसे कहें

दिलशिकस्ता आपको ऐसे दिखाने क्यूँ लगे

मिलने का वादा किया हो याद पड़ता ही नही

बेसबब वो रास्ते हम को बुलाने क्यूँ लगे"".....आदरणीय..शिज्जू जी, बड़े ही कातिल शेअर, भाई जी..क्या बात है! बहुत खूब...दिली दाद कुबूलिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 5, 2013 at 5:30pm

राज दी आपकी इस हौसला अफज़ाई के लिए आभार व्यक्त करता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2013 at 5:16pm

इस मरासिम लफ़्ज़ से ही आजिज़ी होने लगी    

फ़ासिले हम को रिफ़ाकत में रुलाने क्यूँ लगे       

  पूरी ग़ज़ल ही बहुत शानदार है दाद कबूलें शिज्जू जी इस एक शेर ने तो ख़ास प्रभाव डाला  है 

Comment by Sumit Naithani on July 5, 2013 at 2:38pm

तीरगी ही जब मुकद्दर बन गई, ऐ ज़िन्दगी!

ये उजाले उन पलों के यूँ जलाने क्यूँ लगे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
1 minute ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
12 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
23 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service