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वाह बहुत सुन्दर कुंडलियाँ हुई है आदरणीय भाई राज जी //हार्दिक बधाई आपको
फूला फला उजाड़ कर, रहा ठूँठ कॊ सींच !
सागर मुक्ता खॊजता, मूरख आँखॆं मींच !!
मूरख आँखॆं मींच, सिखाता तीर चलाना !
लाया घॊंघा खींच,कहॆ मिल गया खज़ाना !!
कहॆं"राज"कविराज, झुलायॆ सब कॊ झूला !
मॆढ़क सा टर्राय, दम्भ मॆं इतना फूला !!३!!///////उम्दा उम्दा
महँगाई मॊटी हुई, पतला हुआ पग़ार !
पति-पत्नी यॆ रात भर, करतॆ रहॆ विचार !!
करतॆ रहॆ विचार, चलॆ कैसॆ घर खर्चा !
उलट-पलट हर बार,रात भर जारी चर्चा !!/////सुन्दरतम
कहॆं "राज" कविराज,मुसीबत भारी आई !
सब्जी रही चिढ़ाय, बढ़ी इतनी महँगाई !!४!!
कुंडलिया छंद पर आपका प्रभुत्व साफ़ नज़र आता है ..समसामयिक रचना सुन्दर बन पडी हैं..
आदरणीया,,,,,,, गीतिका "वॆदिका" जी आपकॆ इस स्नॆह कॆ लियॆ दिल सॆ आभार,,,,,,,,,,
बहुत सुंदर कुण्डलिया छंद की रचना की आपने आदरणीय कवी राज!
सचमुच इतने सुन्दर और प्रभावोत्पादक छंदरचना की मेरे पास इनकी प्रशंसा करने को उपयुक्त शब्द नही सूझ रहे!
आपको बहुत बहुत बधाई!!
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