दोस्तों अपने इस के साथ आप सबको
रमजान की मुबारक वाद देता हूँ ...................................
खुदा की धरती खुदा का अम्बर ,
खुदा की कुदरत पे किसका हक़ है ।
वो ही बनाये वो ही मिटाए ,
कि उसकी रहमत पे किसको शक है ।
कमाये तुमने यहाँ पे लाखों ,
मगर तमन्ना चुकी नही है ।
ये सुन लो जिस पे है नाज़ तुझको ,
वो जिंदगानी तेरी नही है ।
ज़रा तो सोचो जो तुमने पायी ,
वो तेरी शोहरत पे किसका हक़ है ।
कि अपने बन्दों की बन्दगी का ,
खुदा ने हरदम ख़याल रखा ।
उन्हें दिखे क्या खुदा जिन्होंने ,
आँखों पे परदा है डाल रखा ।
कि हमको जिसने किया है पागल ,
उसकी मोहब्बत पे किसको शक है ।
बगैर उसके भले ही बन्दे ,
ये तेरी महफ़िल जवाँ रहेगी ।
पर बेकरारी की हर कहानी ,
तुम्हारे दिल में बयाँ रहेगी ।
जो कर रहा तू बेजान धन की,
तेरी इबादत पे उसका हक़ है ।
वो पल भी आएगा एक दिन तो ,
जब मौत तेरी करीब होगी ।
ओ भव्य महलों में रहने वाले ,
ज़मी चार गज ही नसीब होगी ।
क्यों अपने बल पे तू फूलता है,
ये तेरी ताकत पे उसका हक़ है ।
कि उसके सिजदे में सर लाखों ,
झुकते रहें हैं झुका करेंगे ।
खुदा के दर पे खुदा के बन्दे ,
नमाज़ यूँ ही पढ़ा करेंगे ।
कि उसकी मर्ज़ी से वो रही जो ,
वो तेरी बरकत पे उसका हक़ है ।
औरों की हस्ती मिटा रहे हो ,
न होगी दुनिया आबाद तेरी ।
कि अपनी हस्ती मिटा के देखो ,
तो पूरी होगी ज़ेहाद तेरी ।
खुद को मिटा कर खुदा में मिल जा ,
तो उसकी जन्नत पे तेरा हक़ है ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
बहुत बहुत अनुग्रह आदरणीय बृजेश जी ।
बहुत सुन्दर! अभिभूत हूं आपकी रचना पढ़कर!
काश! आप यदि छंद विधान समूह और गजल की बातें समूहों के सदस्य हो गए होते तो आज गजब ढा रहे होते।
इस रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!
सादर!
thanks sumit bhai
बहुत बहुत आभार आ० आशुतोष जी
बहुत बहुत धन्यवाद आ० श्याम नारायण भाई
sunder
बेहतरीन रचना ..बधाई हो
बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई......................................." |
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