वज्न - 2122 1122 22
महफिलें यूँ ही सजाये रखना
हौसला अपना बनाये रखना
चाँद के पहलू में अन्धेरा है
इन चिरागों को जलाये रखना
रविशे-आम आज हरीफ़ाना है
संग हाथों में उठाये रखना
अपनी यादों के वही दिलकश पल
इन निगाहों में छिपाये रखना
दरमियां फूलों के गुज़रो तुम तो
गुलचीं से खुद को बचाये रखना
(हरीफ़ाना= दुश्मनों सा. संग= पत्थर
गुलचीं= फूल तोड़ने वाला)
-मौलिक अप्रकाशित*
*संशोधित
Comment
भा गयी ग़ज़ल श्री शिज्जू जी
चाँद के पहलू में अन्धेरा है
इन चिरागों को जलाये रखना
बहुत बधाई आपको
भाई जे आपने जो बहर ले ली है उसमें लय का अटकाव निश्चित है ...
इस ग़ज़ल को इस मात्रा के अनुसार कर लें तो ग़ज़ल गुरुसत हो जायेगी
२१२२ / ११२२ / २२
या
२१२२ / १२१२ / २२
लय में आपके कई मिसरे इन्हीं दो बहर पर आ रहे हैं मगर आपको एक को चुनना होगा ....
वीनस जी आपका आभार जो आपने ग़ज़ल पसंद किया,
//कुछ मिसरे आपकी दी हुई मात्रा से भटक रहे हैं .//
शायद आपका इशारा दूसरे शे'र और मकते की तरफ है.
अजय जी आपका आभार
बहुत खूब
शानदार अभिव्यक्ति
कुछ मिसरे आपकी दी हुई मात्रा से भटक रहे हैं ...
पुनः विचार कर लीजिए
आदरणीय सादर अभिवादन
"महफिलें यूँ ही सजाये रखना
हौसला अपना बनाये रखना"......................सुंदर पंक्तियाँ
केतन जी आपका आभार
शुक्रिया प्रियंका जी जो आपने मेरी इस रचना को पसंद किया
आपकी इस तारीफ के लिए गीतिका जी बहुत बहुत धन्यवाद, निगाहे-मेह्र कायम रखें.
bahut khub...badhaayi
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