वज्न- 2122 1212 112
कब से बेकल है ये बहार बहुत
रोज़ो-शब तेरा इंतज़ार बहुत
इश्क कामिल न हो सका किसी का
आये दुन्या में जाँनिसार बहुत
रंग लायेगा आशिकी का जुनूँ
सुर्ख है अब के रसनो-दार बहुत
आदमीयत से है गुरेज़ जिन्हें
अम्न गुज़रे है नागवार बहुत
हक़ के बदले में जान का सौदा
इस ज़माने में है ये कार बहुत
कामिल =पूरा
जाँनिसार =दूसरों के लिये प्राणों की आहूति देने वाला
रसनो-दार =सूली और पाश
गुरेज़= घृणा
कार =पेशा
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदमीयत से है गुरेज़ जिन्हें
अम्न गुज़रे है नागवार बहुत ...
बहुत बहुत दाद कुबूल करें, भाईजी.. .
ग़ज़ल अच्छी है हार्दिक बधाई आदरणीय
बहुत सुन्दर भाव पिरोए हैं, आदरणीय शिज्जू जी।
सादर,
विजय निकोर
umda kahan choti behr me
हक़ के बदले में जान का सौदा
इस ज़माने में है ये कार बहुत
Bahut umda Sher hai saahab badhaai
सुन्दर भाव, अच्छा प्रयास. बधाई.
हक़ के बदले में जान का सौदा
इस ज़माने में है ये कार बहुत........वाह ! बहुत खूब, क्या कहने
बहुत सुंदर ! हार्दिक बधाई आपको, आदरणीय शिज्जू जी
वाह! बहुत खूबसूरत! आपको बहुत बधाई!
रंग लायेगा एक रोज़ जुनूँ
सुर्ख है अब के रसनो-दार बहुत.. वाह बहुत ही बढ़िया आदरणीय शिज्जू जी बधाई आपको
ओह ....मुझे माफ़ कीजिये..मुझसे ही चूक हुई| दोनों मिसरे बा बह्र हैं|
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