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नक्श ढूँढे वो मेरा हस्ती मिटाने के बाद

वज्न: 2122 1122 1122 22/112 

कोई याद अब करे है मुझको भुलाने के बाद

नक्श ढूँढे वो मेरा हस्ती मिटाने के बाद

हो गया गर्क़ सफीना मेरा इक तूफां में

चुप है अब मौजे-तलातुम यूँ डुबाने के बाद

लगती है बोली परस्तिश को अकीदत की यहाँ

अब यकीं लुटता है बाज़ार में आने के बाद

रोये क्यूं अपनी तबाही पे अब ऐ नादां तू

खुद मुदावे को गया जान से जाने के बाद

ऐ बशर अब न पशेमां हो नई सांस ले यूँ

इक नई शमअ-ए-उम्मीद जलाने के बाद

-मौलिक और अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2013 at 4:11pm

अपनी ग़ज़लों में उन्हीं शब्दों को स्थान दें जिनके प्रति आप आश्वस्त हों. ऐसा मानना कि ग़ज़ल बिना फ़ारसी या अरबी शब्दों के उचित प्रतीत नहीं होती तो यहभ्रम है, भाईजी. हिन्दी तत्सम शब्दों का सम्यक प्रयोग करते हुए इलाहाबाद से स्वनामधन्य विद्वान और ग़ज़लकार आदरणीय एहतराम इस्लाम जी ने अद्भुत ग़ज़लें कही हैं जो आज स्वयं में मिसाल हैं.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 12, 2013 at 3:56pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आपकी रचनाओं पर साफ टिप्पणी सतत सुधार को प्रेरित करती है, आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करूंगा अभी मेरे शब्द ज्ञान में कुछ कमी है इसलिये ऐसा हो रहा है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2013 at 11:55am

भाई शिज्जूजी, आपकी गज़ल मेहनत और इत्मिनान से लिखी हुई ग़ज़ल लगी.

सभी पाठकों का अनुमोदन अच्छा लगा.

एक निवेदन, बार-बार मात्राओ का गिराना भी एक दोष की तरह लिया जाता है.

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 12, 2013 at 10:15am

भाई रामशिरोमणि जी आपका आभार

Comment by ram shiromani pathak on September 11, 2013 at 8:33pm

कोई याद अब करे है मुझको भुलाने के बाद

नक्श ढूँढे वो मेरा हस्ती मिटाने के बाद

वाह बेहद खूबसूरत ग़ज़ल // आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 10, 2013 at 3:11pm

आदरणीया विजयश्री जी उत्साहवर्द्धक टिप्पणी के लिये आपका  तहे दिल से शुक्रिया

Comment by vijayashree on September 10, 2013 at 11:15am

कोई याद अब करे है मुझको भुलाने के बाद

नक्श ढूँढे वो मेरा हस्ती मिटाने के बाद

वाह ! खुबसूरत ग़ज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 9, 2013 at 8:33pm

आदरणीय बृजेश जी एवं विजय जी आपका तहे दिल से शुक्रिया

Comment by विजय मिश्र on September 9, 2013 at 12:34pm
बेहद खूबसूरत , बधाई सिज्जुजी
Comment by बृजेश नीरज on September 8, 2013 at 10:13pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
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