एक प्रयास
(बहर- 2122 2122 2122)
लक्ष्य क्या जो खोजते हम दौड़ते हैं।
है कहाँ ये आज तक ना जानते हैं।।
ढूंढ साधन,साधने को लक्ष्य सोंचा,
ना सधा ये,सब 'स्व' को ही रौंदते हैं।
जग छलावे में भटकते इस तरह हम,
शांति के हित शांति खोते भासते हैं ।
*समर्पण हो पूर्ण,या लब सीं लिए हों,
क्या शिला भी प्रेम को पा सीलते हैं?
ना पहुंचू पर मुझे हो भान तो वह,
तब बढेंगे, आज तो बस खोजते हैं ।।
*संशोधित
-विन्दु
(मौलिक,अप्रकाशित)
Comment
एक प्रयास है तो बहुत अच्छी बात है. बधाई. वैसे ग़ज़लों में हिन्दी के तत्सम शब्दों के प्रयोग के बारे में लोगों की अलग अलग राय है.
आदरणीया वंदना जी, सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई
आदरणीया वंदना जी बहुत ही प्रसन्नता हुई कि आपने इस विधा में प्रयास किया। अन्य विधाओं में आपकी रचनाओं की तरह यह रचना भी बहुत ही सुन्दर है। आपकी रचनाओं के भाव अच्छे ही होते हैं। प्रथम प्रयास होने के बावजूद बहुत ही अच्छी रचना है।
यह माना जाता है कि गज़ल में कम से कम 5 अशआर होने चाहिए। एक और जोड़िए इसमें।
आदरणीय अरुन जी ने ‘स्व’ को लेकर प्रश्न उठाया है। वाजिब है। हिन्दी के हिसाब से मैं इस प्रयोग से सहमत हूं। आगे इस बिन्दु पर सुधीजनों का मार्गदर्शन लाभप्रद होगा।
एक बात आपने ‘सोंचा’ लिखा है। सही शब्द ‘सोचा’ होता है। आपका विचार इस बिन्दु पर जानना चाहूंगा।
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