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मैं लिखा करता हूँ

भाव की ध्वनियों को;

उतारता हूँ

नए शब्दों में

नए रूपों में।

 

रस, छंद, अलंकार

तुक, अतुक

सब समाहित हो जाते हैं

अनायास।

ये ध्वनि के गुण हैं;

शब्द के श्रंगार।

इन्हें खोजने नहीं जाता।

 

मुझे तो खोज है

उस सत्य की

जिसके कारण

मैं सब कुछ होते हुए भी

कुछ नहीं

और कुछ न होते हुए भी

सब कुछ हो जाता हूँ।

 

शायद किसी दिन

किसी अक्षर

किसी शब्द के पीछे

छिपे अर्थ में से

सहसा प्रकट हो जाए

वह सत्य

और मेरी आंख का

मोतियाबिन्द खत्म हो जाए।

              - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on July 22, 2013 at 5:13pm

आदरणीय अरुन भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 22, 2013 at 2:42pm

वाह आदरणीय बृजेश भाई जी वाह आनंद आ गया बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ह्रदय से बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on July 19, 2013 at 7:16pm

आदरणीया वंदना जी आपका बहुत आभार!

Comment by Vindu Babu on July 19, 2013 at 6:47pm
आदरणीय कविता में भावों की मौलिकता झलक रही है।
काव्य का मुख्य गुण वास्तविक भावों को शब्द देना ही तो है,ये तुक,अतुक,अलंकार आदि भावों की प्रबलता और परिपक्व भावाभ्यक्ति के साथ स्वत: आने लगते हैं।
रचना पूरी ही बहुत अच्छी लगी,अन्तिम दो बन्द बहुत ही अच्छे लगे।
सादर बधाई एवं शुभकामना।
Comment by बृजेश नीरज on July 19, 2013 at 5:59pm

आदरणीया गीतिका जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on July 19, 2013 at 5:58pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on July 19, 2013 at 5:57pm

आदरणीय राज नवादवी साहब आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on July 19, 2013 at 5:56pm

आदरणीया परवीन जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by वेदिका on July 19, 2013 at 4:14pm

बहुत ही सुंदर भाव समाहित रचना पर बधाई आदरणीय बृजेश जी!!

Comment by annapurna bajpai on July 19, 2013 at 1:01pm

वाह बृजेश जी , बड़ी ही सुन्दरता से भावों को को पिरोया है आपने .

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