For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1-
शाश्वत प्रेम सदैव है, सृष्टि आदि अनुमन्य।
यह ईश्वर का अंग है, करके सब हों धन्य॥
करके सब हो धन्य, जगत का सार यही है।
वश में होते ईश, प्रेम का काट नहीं है॥
कबिरा मीरा सूर, शशी आदिक इसमें रत।
नहीं वासना युक्त, प्रेम तो सत्व शाश्वत॥

2-
बहती गंगा प्रेम यह, बांध सका नहिं कोय।
अन्हवाये तन प्रेम में, हर मन निर्मल होय॥
हर मन निर्मल होय, कलुष अंतर का मिटता।
नहीं वासना युक्त, प्रेम वश ईश्वर मिलता॥
निकल अचल हिमवान, सिन्धु चंचल में मिलती।
गंगा प्रेम प्रतीक, निरंतर कलकल बहती॥

मौलिक व अप्रकाशित
(संशोधित)

Views: 888

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vasundhara pandey on August 7, 2013 at 2:50pm

सुन्दर ,बहुत सुन्दर...बधाई आपको..!!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:38pm
आदरणीय आशुतोष मिश्रा सर जी! रचना की सराहना के लिये हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:34pm
आदरणीय केतन जी रचना सराहना के लिये हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:33pm
आदरणीयl प्राची दीदी! आपने अनुज की रचना पर अपना महत्वपूर्ण व बहुमूल्य समय दिया अनुज कृतकृत्य है।
प्रवाह सम्बंधी कमी शब्द- संयोजन की अकुशलता है। दूर करने का प्रयास करता हूँ। सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:30pm
आदरणीया अन्नपूर्णा जी व शशि पुरवार जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:28pm
आदरणीय सौरभ सर जी! सादर नमन
आपने रचना को सराहा, निखारा इसके लिये मैं आपका हृदय से आभारी हूँ। आपने अत्यंत महीन किन्तु महत्वपूर्ण दोष दिखा कर मेरे ज्ञान में अभिवृद्धि किया है, इसके लिये मैं आपको भूरिश: विनत प्रणाम निवेदन करता हूं। आपके आशीष से मुझे आत्मबल मिला है। दोषों को अभी दूर करता हूँ।
सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:22pm
आदरणीय भाई पीयुष जी!रचना की कमी की तरफ ध्यानाकर्षण व इसकी प्रशंसा के लिये आपका हृदय से आभार।
कमी को अभी दूर करता हूँ।
सादर।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:18pm
आदरणीय जवाहर लाल जी! आदरणीया सरिता भाटिया जी! भाई अमन कुमार जी और आदरणीय श्याम नारायन वर्मा जी! रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 31, 2013 at 9:15pm
आदरणीय गुरुजनवृंद! सादर नमन
सर्वप्रथम आप सबके स्नेहाशीष पर विलम्ब से आने के लिये क्षमाप्रार्थना। ऐसा स्वास्थ्य कारणों के चलते हुआ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2013 at 6:22am

शास्वत प्रेम ही मनुज मात्र को इश्वर तक जाने का एक मात्र रास्ता है ..शास्वत प्रेम की महिमा का बखूबी चित्रण किया है आपने अपनी रचना के माध्यम से ..ढेर सारी बधाई स्वीकारें..सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service