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प्रकृति और मानव (दोहा)

घर मकान की आड़ में , बचा नहीं कुछ शेष!
मानव मद में डूबकर,बदल दिया परिवेश !!१

जल थल दूषित हो रहे, मानव फिर क्यों मौन ?
नयन खोल जब सो रहा , इसे जगाये कौन!!३

बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!
स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न प्रकोप!!४

माता जिसको कह रहे , उस पर ही अन्याय !
मानव प्रतिदिन मारता, अनगिन कोड़े हाय !!५

धरती हरी भरी रहे ,रंग बिरंगे फूल!
कुछ तो ऐसा कार्य कर ,धरती के अनुकूल!! ६

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by annapurna bajpai on July 24, 2013 at 7:22pm

आ0  राम शिरोमणि पाठक जी सुंदर दोहों के लिए बधाई स्वीकारें ।  

Comment by बृजेश नीरज on July 24, 2013 at 5:45pm

अनुपम! राम भाई बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 4:33pm

हार्दिक  आभार  आदरणीया   कुन्ती  दीदी //सादर 

Comment by coontee mukerji on July 24, 2013 at 3:18pm

एक एक दोहे एकदम आज के समाज को आइना दिखा रहा है.............

माता जिसको कह रहे , उस पर ही अन्याय !
मानव प्रतिदिन मारता, अनगिन कोड़े हाय !!५

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