घर मकान की आड़ में , बचा नहीं कुछ शेष!
मानव मद में डूबकर,बदल दिया परिवेश !!१
जल थल दूषित हो रहे, मानव फिर क्यों मौन ?
नयन खोल जब सो रहा , इसे जगाये कौन!!३
बूँद बूँद संचय करो, पौधे भी दें रोप!
स्नेह करेगी फिर धरा,झेलेगा न प्रकोप!!४
माता जिसको कह रहे , उस पर ही अन्याय !
मानव प्रतिदिन मारता, अनगिन कोड़े हाय !!५
धरती हरी भरी रहे ,रंग बिरंगे फूल!
कुछ तो ऐसा कार्य कर ,धरती के अनुकूल!! ६
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ0 राम शिरोमणि पाठक जी सुंदर दोहों के लिए बधाई स्वीकारें ।
अनुपम! राम भाई बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई स्वीकारें।
हार्दिक आभार आदरणीया कुन्ती दीदी //सादर
एक एक दोहे एकदम आज के समाज को आइना दिखा रहा है.............
माता जिसको कह रहे , उस पर ही अन्याय !
मानव प्रतिदिन मारता, अनगिन कोड़े हाय !!५
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