गुजरती नहीं रात
संघर्ष करता रहा नींद से,
जब भी लेता हूँ करवट
चुभने लगते है कांटे
यादों के.//1
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बहुत आभारी हूँ आपका
जिंदा तो छोड़ा पागल बनाकर ही सही//2
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दिल बहलाने का सामान
थोडा बहुत इनाम
बस इतने के लिए क्या?
स्वाभिमान बेच दूँ//3
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डर की निद्रा में विलीन
रात ही रात
सुन्दर स्वप्न भ्रान्ति
पतन ही पतन
दुर्बल मानसिकता से ग्रसित
रात्रि का मोह
रक्त सूख गया क्या?
अरे !उठो लड़ो
ये उत्पीडन का राज्य है//4
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हे ! ईश्वर
ज़रा सुनिए
दर्शन को व्याकुल
दौड़ते
एक दूसरे को रौंदते हुए
आपके सच्चे भक्त आ रहे है//5
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दुख के सन्नाटे से
लड़ रहा हूँ
तभी तो
आज फिर अकेला हूँ//6
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चिपकती आँतों का दर्द झेलता
भूख से छटपटाता रहा
हाय! मरने के पहले
अंतिम हिचकी भी ना आई//7
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बेवफा खुद
मुझे बेवफा कहने लगे
बेशर्मी की हद तो देखो
कहने लगे नहीं जीना मुझे
ज़हर दे दो
मैंने हँस के कहा
खुद को निचोड़ लो//8
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अपने पराये लगने लगे उन्हें
चलो कोई बात नहीं
अरे !लेकिन ये क्या कर डाला
खुशी से उनके पहलू मे जा बैठे
जिनके हाथो मे ख॑जर था//9
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खुद को कोई कब तक बचाए
जब सच खुद ही
कपड़े उतार सामने खड़ा हो//10
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
Comment
हार्दिक आभार आदरणीया महिमा जी ///*****
हे ! ईश्वर
ज़रा सुनिए
दर्शन को व्याकुल
दौड़ते
एक दूसरे को रौंदते हुए
आपके सच्चे भक्त आ रहे है//.... उफ़!!! पूरा का पूरा सच ... बहुत -२ बधाई आ. राम शिरोमणि जी .. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
आदरणीय भाई केवल जी हार्दिक आभार //सादर
आ0 भाई राम शिरोमणि जी, वाह! यथार्थ के पथ पर शानदार प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मन जी //सादर
आदरणीया प्राची जी आपको क्षणिकाएं अच्छी लगीं ,यही मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है //प्रणाम सहित हार्दिक आभार //सादर
सुन्दर क्षनिकाए है, थोडा शैली में परिवर्तन चाहती है | जैसे -
खुद को कोई कब तक बचाए खुद को कोई कब तक बचाए
जब सच खुद ही जब सच खुद ही
कपड़े उतार सामने खड़ा हो//10 कपड़े उतार सामने आ जाए //
हार्दिक बधाई भाई श्री राम शिरोमणि पाठक जी
प्रिय राम शिरोमणि जी
एक एक क्षणिका रुक कर ह्रदय को स्पंदित कर रही है...बहुत सुन्दर.
जिस संवेदनशीलता के साथ इन्हें लिखा गया है..उसके लिए बार बार बधाई
बहुत सुन्दर.
शुभकामनाएं
बहुत बहुत आभार भाई संदीप //सादर
बहुत बहुत आभार भाई राजेश जी //सादर
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