For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन, पंछी और किसान

बचपन, पंछी और किसान

बचपन
अकेला बचपन,
न कोई संगी न साथी.
मुँह अंधेरे माता पिता घर से निकल जाते,
कर जाते मुझे आया के हवाले;
शाम को वे घर आते थके मांदे,
मैं रूठती अभिमान करती
तब पिता बड़े प्यार से कहते-
‘’बेटे! हम काम करते हैं तुम्हारे ही
उज्ज्वल भविष्य के वास्ते.’’

पंछी
सूनी आँखें ताक रही थीं
सूना आकाश,
बंद मुट्ठी में भुरभुरी हो कर,
बिखर रहे थे ज़मीन पर,
बिस्कुट के चन्द टुकड़े.
देख रही थी एक नन्ही चिड़िया
आँखें झिबझिबाती, पर बड़ी चौकन्नी -
मौका देख ले गयी फुर्र
बिस्कुट के वे चंद टुकड़े.
मैं खुश हुई कुछ चकित भी,
‘काश! मैं भी चिड़िया होती,
उड़ती, अकेली कभी न रहती.
चिड़िया मुझसे लगी घुलने मिलने,
जो मैं खाती उसे भी खिलाती,
बस गया एक कलरवित संसार
और, गूँज उठा सूना बचपन मधुर रव से.

दौड़ती मैं खेतों की क्यारियों में,
पक्षीगण खाते कीड़े मकोड़े -
जब उड़ाती मैं पतंग
वे हवा में गोता खाते.
मिल गयी थी गति बचपन को,
बहने लगा झील का पानी नदी बन के.

किसान
किसान खेतों का राजा,
बीज उगाता, कंद मूल बोता
पालनहारा.
प्रकृति मेहरबान,
रिम झिम मेह बरसता,
फ़सल लहलहाते.
पक्षीगण खाते कीट पतंग
वे फ़सलों के रखवाले.

हे किसान!
स्वार्थ कहूँ , लोभ कहूँ,
तेरी मजबूरी या प्रगति कहूँ.
कर कीट नाशक का छिड़काव,
अपने मूछों पर तू देकर ताव,
बचा तो लिया फ़सलें,

पर हाय रे!

पंछी तेरी कौन सुनें?
किया तूने जिसका रक्षण,
हुआ काल कवलित कर उसका ही भक्षण.

भोला बचपन मूक देखता
इंसानी दांव-पेंच,
मन कहता “ओ भोले नभचर
दूर ही से देख –
इन फ़सलों में ज़हर भरा है
मानव को न लाज ज़रा है,
कर दी उसने अतिरेक.”
“ अब उड़ चल तू नील गगन में
नए क्षितिज की नयी खोज में
जो अशुभ हैं उन स्मृतियों को
अपने पीछे फेंक”
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 581

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 31, 2013 at 10:05am

निर्मल निश्छल बचपन बना लेता पंछियों से दिल का रिश्ता...उनके पंखों से उड़ता मन ही मन ऊंचीं उड़ान 

पर .... खेतों में लहलहाती आकर्षित करती, पंछियों को ललचाती  फसलों में छुपे कीटनाशक... ( उफ्फ याद आ गया आज से १८ साल पहले एक बेहद खूबसूरत मोर का मेरी नज़रों के सामने तडपते तडपते छत पर आ कर दम तोड़ देना)

पंछियों को तलाशना होगा एक नया क्षितिज क्योंकि जहाँ तक मानव है वहाँ तक उसका लोभ अबोल पंछियों को जीने कहाँ देगा..

बहुत सुन्दर भाव..

मैं भी आ० बृजेश जी से सहमत हूँ... ये रचना अभी कुछ कसावट मांगती है. कहीं कहीं व्याकरणी दोष भी हैं 

जैसे, 

अपने मूछों पर तू देकर ताव,
बचा तो लिया फ़सलें

सादर

 

Comment by Meena Pathak on July 26, 2013 at 7:26pm

“ अब उड़ चल तू नील गगन में
नए क्षितिज की नयी खोज में
जो अशुभ हैं उन स्मृतियों को
अपने पीछे फेंक”.................बहुत सुन्दर प्रस्तुति .... बधाई स्वीकारें    सादर 

Comment by coontee mukerji on July 26, 2013 at 2:28am

आपकी बात ठीक है बृजेश जी. मैं शरद जी की सहायता से इसको पुनः एडीटिंग करूँगी. आपका मार्गदर्शन मेरे लिये बहुत मायने रखता है.आपको हृदय से धन्यवाद.

Comment by बृजेश नीरज on July 25, 2013 at 11:05am

बहुत ही सुन्दर! भावों को बहुत सुन्दरता से पिरोया है आपने! आपकी भावप्रवणता एक मिसाल है। आपको हार्दिक बधाई!
एक निवेदन करना चाहता हूं कि मुझे लगता है कि इन कविताओं की यदि एडिटिंग कर दी जाए तो ये और निखर आएंगी। ये मेरे निजी विचार भर हैं। आप देख लें।
शुभकामनाओं सहित।
सादर!

Comment by Shyam Narain Verma on July 24, 2013 at 5:18pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by ram shiromani pathak on July 24, 2013 at 4:30pm

भोला बचपन मूक देखता
इंसानी दांव-पेंच,
मन कहता “ओ भोले नभचर
दूर ही से देख –
इन फ़सलों में ज़हर भरा है
मानव को न लाज ज़रा है,
कर दी उसने अतिरेक.”
“ अब उड़ चल तू नील गगन में
नए क्षितिज की नयी खोज में
जो अशुभ हैं उन स्मृतियों को
अपने पीछे फेंक”//वाह क्या विम्ब खीचा है

आदरणीया कुन्ती दीदी हार्दिक बधाई आपको //सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service