जल उठा मन का दिया
प्रियतम! मिले हो जब से !
भोर हुयी है जीवन में
तमस रात थी कब से !
सांसो में तेरी ही खुशबु
तुझको पाया जब से !
फूल खिले मन-उपवन में
बीता पतझड़ जब से !
रक्त वाहिनी मद्धम मद्धम
छुआ है तुमने जब से !
जितेन्द्र 'गीत'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जल उठा मन का दिया
प्रियतम! मिले हो जब से !
सुंदर शुरुआत के लिए शुभकामनायें लीजिये आदरणीय गीत जी!
आदरणीय डी. पी. माथुर जी,
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से लेखनकर्म सार्थक हुआ,
बहुत बहुत आभार आपका, आशीर्वाद व् स्नेह बनाये रखियेगा
आदरणीय सौरभ जी,
रचना के प्रति आपका सकारात्मक भाव, लेखन कर्म को उर्जा प्रदान कर रहा है,
पाठक से रचनाकर की उपलब्धि , केवल और केवल ओ बी ओ के सानिध्य का ही श्रेय है,
बहुत बहुत आभार आपका, आशीर्वाद व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
मन की गहराईयों से निकले गीत ने सच में मन मोह लिया , आपको बधाई
आपके अंतर से कविता फूट पड़ी यह इस मंच की भी उपलब्धि है, भाईजी.
आपके प्रयास के प्रति सकारात्मक भाव है. हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीय आशीष जी,
आपने रचना को पसंद किया, लेखनी को सार्थकता मिली
तहे दिल से शुक्रिया आपका,
सादर
फूल खिले मन-उपवन में
बीता पतझड़ जब से !..... भई क्या कहने वाह वाह !!
अच्छी रचना पर बधाइयाँ भाई जितेन्द्र 'गीत' जी....
आदरणीय बृजेश जी,
आपकी उत्साह बर्धक प्रतिक्रिया से, मेरा लेखन के प्रति उत्साह दो गुना हो गया
सादर!!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया महिमा जी,
आप सभी प्रबुद्ध रचनाकारों का सानिद्ध्य, मेरा सौभाग्य है
लेखन कर्म पर आपने दृष्टि डाली, रचना सार्थक हुयी..
सादर!!
रचना को सराहने, उत्साह बर्धन हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय चन्द्रशेखर जी,
सादर
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