आज सच तुझसे कहूँ
बिन तेरे कैसे रहूँ
इक दिन न इक रात
अन्तरंग यह बात...
सांसों में अब मिठास है
कड़वाहट अब न पास है
जब से तू है साथ
अन्तरंग यह बात...
जुल्फ तेरी घनघोर घटा
लहराएँ तो सर्द हवा
प्यार तेरा बरसात
अन्तरंग यह बात...
नयन तेरे मधुशाला हैं
बाहें तेरी, मेरी माला हैं
पाक मेरे जज्बात
अन्तरंग यह बात...
मर जाऊं मिट जाऊं मैं
तुझ संग ही जी पाऊँ मैं
यही मेरे हालात
अन्तरंग यह बात...
मेरा सब कुछ तू ही तू
तेरा सब कुछ मैं ही हूँ
अमर मिलन की रात
अन्तरंग यह बात...
मैंने तुझसे प्रेम किया
तूने मुझसे प्रेम किया
क्या घोड़े बारात
अन्तरंग यह बात...
यकीन तू मुझ पर कर ले
मेरे लिए जी ले, मर ले
अब न दूंगा आघात
अन्तरंग यह बात...
-जितेन्द्र 'गीत'
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आदरणीया वंदना जी
आपने रचना के भाव को पसंद किया, रचना सार्थक हुयी, बहुत बहुत आभार आपका
सादर!
आदरणीय सौरभ जी
आपका बहुत बहुत आभार, आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
मैं मुग्ध हूँ, आपके प्रयास और आपकी रचना पर.
बधाई बधाई..
आदरणीय विजया मिश्र जी!
सुंदर शब्दों से सजी आपकी प्रतिक्रिया मुझे सम्बल प्रदान करती है
आदरणीया शुभ्रा जी,
रचना को सराहने के लिए, बहुत बहुत आभार आपका
सादर!
आदरणीय अरुण अनंत जी,
बहुत समय से ,मैं रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा था
मेरी पिछली रचना पर आपने मुझे कटक त्रुटी की जानकारी से अवगत कराया था, तब मुझे आपके मार्गदर्शन से बहुत अपनापन व् लेखनकर्म को मनोबल मिला ,
ओबीओ पर आप सभी रचनाकारों से मुझे बहुत स्नेह मिल रहा है, समय समय पर मार्गदर्शन भी,
सादर!
आदरणीय जीतेन्द्र जी ,यकीन तू मुझ पर कर ले मेरे लिए जी ले, मर ले अब न दूंगा आघात, बहुत बहुत बधाई
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