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कविता : बादल, सागर और पहाड़ बनाम पूँजीपति

बादल

 

बादल अंधे और बहरे होते हैं

बादल नहीं देख पाते रेगिस्तान का तड़पना

बादलों को नहीं सुनाई पड़ती बाढ़ में बहते इंसानों की चीख

बादल नहीं बोल पाते सांत्वना के दो शब्द

बादल सिर्फ़ गरजना जानते हैं

और ये बरसते तभी हैं जब मजबूर हो जाते हैं

 

सागर

 

गागर, घड़ा, ताल, झील

नहर, नदी, दरिया

यहाँ तक कि नाले भी

लुटाने लगते हैं पानी जब वो भर जाते हैं

पर समुद्र भरने के बाद भी चुपचाप पीता रहता है

इतना ही नहीं वो पानी को खारा भी करता जाता है

ताकि उसे कोई और न पी सके

 

पहाड़

 

पहाड़ सिर्फ़ ऊपर उठना जानते हैं

खाइयाँ कितनी गहरी होती जा रही हैं

इसकी परवाह वो नहीं करते

ज्यादा खड़ी चढ़ाई होने पर सबसे कमजोर हिस्सा

अपने आप उनका साथ छोड़ देता है

और इस तरह उनकी मदद करता है ऊँचा उठने में

एक दिन पहाड़ उस उँचाई से भी अधिक ऊँचे हो जाते हैं

जहाँ तक पहुँचने के बाद

विज्ञान के अनुसार उनका ऊपर उठना बंद हो जाना चाहिए

 

पूँजीपति

 

एक दिन अनजाने में

ईश्वर बादल, सागर और पहाड़ को मिला बैठा

उस दिन जन्म हुआ पहले पूँजीपति का

जिसने पैदा होते ही ईश्वर को कत्ल कर दिया

और बनवा दिये शानदार मकबरे

रच डालीं मकबरों की उपासना विधियाँ

 

तब से पूँजीपति ही

ईश्वर के नाम पर मजलूमों का भाग्य लिखता है

और उस पर अपने हस्ताक्षर कर ईश्वर की मोहर लगता है

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 4:42pm

बादल, सागर और पहाड़ के प्रोपर्टीज को एन्कैप्सुलेट कर जैसा न आपने सबक्लास बनाया कि ऑब्जेक्ट रोबस्ट हुआ, समझिये बीटा टेस्ट पास कर गया है. पास तो करना ही था.

ऑब्जेक्ट-नेम भी अच्छा लगा -- पूँजीपति.  :-)))

ऊप्स कॉन्सेप्ट (Oops concept) लीनियर प्रोसेस नहीं, भाई, सीधा आउटकम पर नज़र रखता है, 

यानि सीधे डॉटा रिट्रीव्ड !!! 

बहुत-बहुत बधाई हो, आदरणीय धर्मेन्द्र भाई,  इस सफल रचना के लिए.

शुभम्

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 1:11pm

आदरणीय धर्मेन्द्र सर जी अलग अंदाज से लिखी गई बहुत ही सुन्दर रचना, बादल, सागर और पहाड़ की इतनी सुन्दरता से व्याख्या की है कि बस मजा आ गया ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by ram shiromani pathak on July 28, 2013 at 6:27pm

सुंदर रचना///बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र जी 

Comment by arunendra mishra on July 28, 2013 at 6:13pm

बहुत ही सुन्दर रचना ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 28, 2013 at 10:43am

सुंदर रचना  प्रस्तुति पर ,बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र जी ..

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